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समय हो, 11-आँखों में आँसुओं की धार बहती हों, 12-छाज के कोने में, 13-उबले हुए उड़द हों। अन्यथा छह महीनों तक मैं तपस्या करता रहूँगा, न भोजन करूँगा और न पानी ही पीऊँगा। यह वह घोर व्रत था, जिसे सुनकर साधारण व्यक्तियों का मन और शरीर काँपने लगता है। क्योंकि लोगों में श्रद्धा एक जैसी नहीं होती, विविध प्रकार की होती है।"
सेठ उसी दिन बाहर से आया था। उसने द्वार खोलकर चन्दनबाला को देखा। वह तीन दिन से भूखी थी। सेठ ने उसके खाने के लिए उबले उड़द छाज के कोने में डाल उसके सामने रख दिए और स्वयं जंजीर तुड़वाने के लिए लुहार को बुलाने गया। इधर भगवान् उसके घर आये। भगवान् को देखकर चन्दनबाला हर्ष-विभोर हो उठी। अभिग्रह-पूर्ति की सारी बातें मिल गईं। किन्तु आँसू नहीं थे। भगवान् मुड़े। चन्दनबाला के आँखों में आंसू छलक पड़े। भगवान् वापस आये और भिक्षा ग्रहण की। यही चन्दनबाला भगवान् महावीर के साध्वी-संघ की अधिनेत्री और छत्तीस हजार साध्वियों में प्रमुखा बनी।
ज्येष्ठ शुक्ला ११, सं. २०१६ महासभा-भवन, कलकत्ता।
- मुनि नथमल
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