Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 136
________________ अश्रुवीणा । ११७ इसलिए तुम ध्यान रखना कम्पन्नयुक्त चंचल तरंग से कामना (काम-वासना) को उत्तेजित करते हुए कहीं युवति विषयक चित्र मत अंकित कर देना। व्याख्या- कामिनियों के कुटिल कटाक्ष से बड़े-बड़े वीर भी पराजित हो जाते हैं लेकिन भगवान पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कामिनीनाम्=कामुक स्त्रियों का। कटाक्षान् कटाक्षों को, अवगण यति तिरस्कृत करता है। येषाम् जिनके। कुटिलगतिभिः =कुटिल गति से युक्त । क्षेपैः = क्षेप का तृतीया बहुवचन । क्षेप-प्रहार, फेंकना। वक्रैः = वक्रों के द्वारा। वक्र-कुटिल, टेढ़ा, क्रूर, घातक वक्रता = क्रूरता, कुटिलता। अत्याजि-त्याग देना। काव्यलिङ्ग अलंकार है। (४४) एते शब्दा निशितविशिखा मन्मथस्येति मत्वा, नोपेक्षेत प्रवर-विरतिः कार्यलग्नांश्च युष्मान् । तन्निश्वासा भगवति हि मेऽमोघ-संप्रार्थितायाः, - श्रद्धापट्ट स्फुटमधिगुणं सम्यगाबध्य यात ॥ अन्वय- एते शब्दा मन्मथस्य निशित विशिखा इति मत्वा प्रवरविरतिः युष्मान् कार्यलग्नान् न उपेक्षेत । निश्वासा तत् हि मे अमोघ प्रार्थितायाः स्फुटम् अधिगुणम् श्रद्धापटम् सम्यग् आबध्य भगवति यातः। अनुवाद- ये शब्द कामदेव के तीक्ष्ण बाण हैं ऐसा मानकर वह प्रकृष्ट संयमी (भगवान्) कार्य में लगे हुए तुम्हारी उपेक्षा न कर दे। इसलिए शब्दों! अमोघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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