Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 137
________________ ११८ / अश्रुवीणा अभ्यर्थना से युक्त मेरे स्पष्ट श्रेष्ठ गुणों से पूर्ण श्रद्धापट्ट को सम्यक् रूप से बांधकर भगवान् में प्रवेश कर जाना (भगवान् के पास जाना)। व्याख्या- भगवान् के पास वही जा सकता है जिसके पास श्रद्धा हो। श्रद्धावान् ही भगवान् को प्राप्त कर सकता है। प्रवरविरति भगवान् का विशेषण है। प्रवर सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम। विरति-सांसारिक वासनाओं से अलग, संयमी। अधिगुणम्-श्रेष्ठ गुण वाला, योग्य, गुणी __काव्यलिङ्ग, रूपक एवं परिकर अलंकार है। विशिखा इति मत्वा-कारण उपेक्षेत-कार्य, काव्यलिङ्गालंकार-श्रद्धापट्टम्= श्रद्धारूप वस्त्र । रूपक अलंकार जहाँ उपमान और उपमेय में एकरूपता हो जाए उसे रूपक कहते हैं। तद्रूपकमभेदोय उपमानोप मेययो:-काव्यप्रकाश।स्फुटम् अधिगुणम्-साभिप्राय विशेषण हैं इसलिए परिकर अलंकार है। (४५) भद्रं भूयात् पथि विचरतां श्रेयसे प्रस्थिताना, दिग्-व्यामोहं न खलु जनयेत् क्वापि वातः प्रतीपः। आशादीपा अभिनवधनाः प्रावृषेण्या हवाश्च, निष्प्रत्यूहाः स्युरिह यदि तत् कः स्मरेद् वामवातम्॥ अन्वय- श्रेयसे प्रस्थितानाम् पथि विचरताम् भद्रं भूयात् । प्रतीप: वातः न खलु क्वापि दिग्-व्यामोहं जनयेत्। यदि आशादीपा प्रावृषेण्याः अभिनवधना निस्प्रत्युहाः हवाश्च इह स्युः कः तत् वामवातम् स्मरेद् । अनुवाद- श्रेयस् के लिए प्रस्थित तुम्हारे मार्ग में विचरण करते हुए सदा कल्याण हो। विपरीत पवन कभी दिशा-व्यामोह (दिङ्मूढ़ता) को उत्पन्न न करें। यदि आशा का दीपक, बरसात ऋतु में उत्पन्न अभिनव मेघ और विघ्नरहित प्रार्थना (आमत्रण) हो तो विपरीत पवन का स्मरण कौन करता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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