Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ अश्रुवीणा / १३३ कष्ट हो गया-ऐसा विचार कर अपने शरीर को पुनः स्वाभाविक स्थिति में ला दिया। गर्भम् गतानाम् गर्भ में प्राप्त हुए जीवों का लक्षण चिह्न, सहजचलनम् सहज हलन-चलन। अरौत्सी-रुध आवरणे धातु लुङ्लकार मध्यम पुरुष एकवचन ।त्याग दिया, रोक दिया। सौध-विशाल भवन, महल, बड़ी हवेली। सौधवास मुटजेन विस्मृतः - रघुवंश 19.2 काव्यलिङ्ग, कारणमाला, अर्थान्तरन्यास, अर्थापति आदि अलंकार हैं। अनुकम्प्य-अरौत्सी-कारण कार्य काव्यलिंग-आँसुओ का उदय का कारण गर्भस्थ भगवान् का हलन-चलन बन्द होना, बन्द होने का कारण माता पर कृपा। इस प्रकार कारण परम्परा अलंकार। अर्थान्तरन्यास-को जानीयत्-चेष्टितानि से पूर्व का समर्थन। को जानीयात्-कौन जान सकता है अर्थात् कोई नहीं-अर्थापति अलंकार। माधुर्य गुण करुणा रसाभास । भगवान् का मरण जानकर आँसुओ की धारा बही लेकिन वास्तविक मरण हुआ नहीं। केवल करुणारस का आभास । अनुकम्पा का बिम्ब । आँसुओ एवं महल में रुदन का बिम्ब भी बन रहा है। (५९). ज्येष्ठभ्रातुर्नयन-सलिलं त्वामरौत्सीदिदीहूं, मन्ये जन्माऽभवदिह तव प्रोञ्छितुं वाष्पधाराम्। वाष्पान् वोढुं किमपि विवशा स्वामिनाऽहं कृतास्मि, दैवे वक्रे भवति हि जगत् प्राञ्जलञ्चापि वक्रम्॥ अन्वय-ज्येष्ठभ्रातुः नयन सलिलम् त्वाम् दिदीधैं अरौत्सीत्। मन्ये वाष्पधाराम् प्रोञ्छितुम् तव इह जन्म अभवत् । किमपि अहं वाष्पान् वोढुम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178