Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 162
________________ अश्रुवीणा / १४३ हैं इसलिए भोग्य वस्तु बन गयी-काव्यलिंग। अन्य कारण मन की दृढ़ता और त्याग भावना उनकी भोग्यता में सहायक बन रही है इसलिए समाधि अलंकार भी है। कारणान्तर के योग से कार्यसुलभ हो गए वहाँ समाधिअलंकार होता है। योषितः -तरुणी, युवति, जवान स्त्री। युष-सेवायाम् धातु से हसृरु हियुषिभ्य इति (उणादि 1.97) से उणादि इत प्रत्यय। (६९) स्त्रीणां प्राणा न खलु विशदं मूल्यमाधारयन्ति, पुंसां कामा अवितथपथाः स्युर्विधिश्चित्र एषः। एषा नारी स्वजनवियुतान्याश्रया जीवनस्य, मूल्यं नीचैर्नयतु वहवो द्रष्टुमित्युत्सुका हि॥ अन्वय-स्त्रीणाम् प्राणाः न खलु विशदम् मूल्यम् आधारयन्ति । पुंषाम् कामा अवितथपथाः स्युः इति विधिश्चित्रः बहवो द्रष्टुमुत्का हि स्वजनवियुता एषा नारी अन्याश्रया जीवनस्य मूल्यम् नीचैः नयतु। अनुवाद-निश्चय ही स्त्रियों के प्राण स्पष्ट मूल्य को धारण नहीं करते (कोई मूल्य नहीं होता है) पुरुषों की वासना अवितथ पथ वाली (सफल होने वाली) होती है यह विचित्र नियम है। बहुत से लोग यह देखने के लिए लालायित रहते हैं कि स्वजनों से वियुक्त यह नारी पराश्रित होकर जीवन के मूल्य को नीचे गिरा दे। व्याख्या-वर्तमानकालीन समाज में संभ्रान्त वर्ग में स्त्रियों की कैसी दुर्दशा हो रही है-इसका स्पष्ट रेखांकन महाप्रज्ञ ने किया है। विशदम्पवित्र, स्पष्ट । मूल्य-कीमत, मोल, लागत, चरित्र, सिद्धान्त, नैतिकता। स्वभावोक्ति अलंकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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