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अश्रुवीणा / १३७
(६२) तीव्र नम्रकरणमनिलं फाल्गुनं वेगवन्तं, किं न्यक्कुर्यात् परिणतदला काममारामराजिः। तस्मादन्यः परिमलवहः पुष्पकालेऽपि न स्याद्, यस्माद् रंहः सहनमुचितं स्वोदयस्य प्रसिद्ध्यै॥
अन्वय-तीव्रम नग्नंकरणम् वेगवन्तम् फाल्गुनम् अनिलम् परिणतदला आरामराजिः किं न्यक्कुर्यात्? तस्माद् पुष्पकालेऽपि अन्यः परिमलवहः न स्याद् । यस्माद् स्वोदयस्य प्रसिद्धयै रंह सहनम् उचितम्।
अनुवाद-तीव्र, नग्न करने वाला और वेगवान फाल्गुन (मास के) पवन को परिणतदल वाले (पके पत्ते वाले) बगीचे क्या अपमानित करते हैं (तिरस्कार करते हैं)। (यदि वे तिरस्कार करें तो) उस पवन को छोड़कर अन्य कौन पुष्प आने पर (वसन्तकाल में) उनके सुगंधी को फैलायेगा? इसलिए अपने अभ्युदय की प्रसिद्धि के लिए वेग (अन्याय) को सहन करना उचित है।
व्याख्या-जीवन की सफलता का सूत्र महाकवि ने इस श्लोक में निर्देश किया है। अपने अभ्युदय के लिए अन्याय का सहन उचित होता है। पवन (अनिल) के लिए कवि ने अनेक साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग किया है इसलिए परिकरालंकार है।
तीव्रम्=कठोर, प्रचण्ड, उग्र 'तीव-स्थौल्ये' धातु से रक् प्रत्यय।
नग्नं करणम्-नंगा कर देने वाला। फाल्गुनी पवन शरीर से वस्त्र उतारकर नंगा बना देता है । वेगाधिक्य और प्रचंडता संसूचित है। नग्न+च्चि+कृ+ल्युट् । वेगवन्तम्= वेगवान् । फाल्गुनम् फाल्गुन मास में बहने वाला, आरामराजि:वन पंक्ति। आराम-बगीचा, जंगल, राजिः पंक्ति।
किं न्यक्कुर्यात्? क्या तिरस्कार करते हैं। न्या (नि उपसर्गपूर्वक अंचू+क्विन्) शब्द क्रियाविशेषण। घृणा, अपमान और दीनता को घोषित करने वाला उपसर्ग। कृ और भू धातु के पूर्व में प्रयुक्त होता है। परिमल-सुगंधी।
अर्थान्तरन्यास अलंकार भी है। ओजगुण एवं माधुर्य गुण।
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