Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ १३० / अश्रुवीणा अनुवाद- अप्राप्य (दुर्लभ) वस्तु को प्राप्त कर प्रथम क्षण में अर्न्तगत दुः खों का प्रादुर्भाव होता है (आन्तरिक व्यथा बाहर आ जाती है) यह नियम यहाँ भी निष्फल नहीं हुआ। चन्दनबाला के अतीत और वर्तमान के दुःखों की स्मृति अभिनव हो गयी। उपालम्भ देने के लिए बेचैन उसकी वाणी भगवान् के सामने प्रस्तुत हुई। ___ व्याख्या- मानवीय मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण कवि ने किया है। जब व्यक्ति को किसी दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति हो जाती है तब उसकी दशा कैसी होती है, इसके सफल चित्रण में महाकवि चतुर है। जिसके लिए कठोर कष्ट, अनगिनत यातनाएं सहनी पड़ती हैं, उसकी प्राप्ति हो जाने पर मनुष्य की दशा विलक्षण हो जाती है। कठोर तपसाधना से जब भगवान् शंकर अचानक प्रकट होते हैं तो पार्वती की दशा बड़ी विचित्र बन जाती है: तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसाङ्गयष्टिः निक्षेपणाय पदमुद्धृतमुद्वहन्ती। मार्गाचलव्यतिकरा कुलितेव सिन्धुः शैलाधिराज तनया न ययौ न तस्थौ ॥ (कुमार 5/85) वन्ध्य=निष्फल, बाँझ, निरर्थक। गतानाम् अतीतानाम् बीते हुए, प्रस्तुतानाम्-वर्तमानानाम् वर्तमान के पुरस्तात्-(अव्यय) आगे, सामने पुरस्तादनुपेक्षनीयम्-रघुवंश 2/44 पुरस्तात्पुरशासनस्य-कुमारसंभव 7.30 एतत्पुरस्तात्-मेघदूत 1.15 स्मृतिः -याद, प्रत्यास्मरण। जिसमें ज्ञात वस्तु को पुनः जाना जाता है वह स्मृति है। अतीत में ज्ञात वस्तु को पुनः याद करना स्मृति है। ... इस श्लोक में काव्यलिंग अलंकार का उत्कृष्ट प्रयोग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178