________________
अश्रुवीणा । १२१ ही उनका उत्साह ठंडा हो जाता है,अन्त तक कोई साथ नहीं देता है। दो दृष्टान्तों सूर्य और बिजली-प्रकाश के द्वारा कवि ने इस लौकिक-सत्य को स्पष्ट रूप से उद्घाटित किया है।
तेजसा तेज अथवा प्रकाश के द्वारा, नभ: आकाश को ईषत् स्पृष्टवा थोड़ा सा स्पर्श कर, रविरपि-सूर्य भी, प्रयाति गच्छति चला जाता है। एष-यह विद्युतालोकः-बिजली का प्रकाश। दिशिदिशि दिशाओं में, लषन्-चमकते हुए स्थैर्यम्-स्थिरता। हि=क्योंकि, जगति-संसार में, प्रारम्भोत्काः प्रारम्भ में उत्साहित लालायित।
उत्काः समुत्सुकाः लालायित, उत्साह युक्त। उत्कण्ठित । उद्गतं मनोऽस्य उत्कः, उद् शब्द से स्वार्थ में कन् प्रत्यय। उत्क उन्मना: (अमरकोश 3.1.17)
इस श्लोक में दृष्टान्त, अर्थापति और अर्थान्तरन्यास अलंकार है।' उपमेय वाक्य, उपमान वाक्य तथा उनके साधारण धर्म में यदि बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव हो तो दृष्टान्त अलंकार होता है-दृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्काव्यप्रकाश 10.102 ईषत्-एषः-दृष्टान्त अलंकार। ___ क: उद्धरेत-कैमुतिक न्याय से अर्थापति अलंकार । प्रारम्भोत्का-अर्थान्तरन्यास अलंकार।
(४८)
श्रद्धा-सूता प्रतिकृतिरलं स्यान्न पूजास्पदानाम्, ते श्रद्धालून् विरह पतितान् प्राणहारं हरेयुः। देहःस्थौल्याद् विहरति बहिर्निर्विशेषञ्च सौक्ष्म्यातस्यच्छाया श्रयति विशदान् केवलं ग्राहकान् हि॥
अन्वय- पूजास्पदानाम् श्रद्धा-सूता प्रतिकृतिः अलम् न स्यात् । ते विरहप्रतितान् श्रद्धालुन् प्राणहारं हरेयुः। देह स्थौल्या द् बहिः विहरति हि सौक्ष्म्यात् निर्विशेषम् चातस्या छाया केवलम् विशदान् ग्राहकान् श्रयति।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org