________________
अश्रुवीणा का गीतिकाव्यत्व / २५
जयदेव की तरह गीत गोविन्द की विरचना कर सकता है। विवेच्य गीतिकाव्य 'अश्रु वीणा' का कवि भी इसी समरसता के धरातल पर अधिष्ठित है। महाप्रज्ञ के सार्थक अभिधान से विभूषित इस श्रमण कवि ने अवश्य ही अपनी कल्पना-नगर के श्रद्धा-गृह में स्थित होकर अपने आराध्य चरणों में आँसुओं की पुष्पांजलियाँ चढ़ाई होंगी। वे ही अंजलियाँ बाद में शब्दांजलि बनकर अश्रुवीणा के रूप में अक्षरित दृग्गोचर हुईं। चन्दनबाला की मुक्ति का कथानक ग्रहण कर महाकवि महाप्रज्ञ ने अश्रुवीणा का निर्माण तो किया, साथ ही अपनी मुक्ति-प्राप्ति की वेदना को भी शब्दायित करने से पीछे नहीं रहे। अस्तु।
'गीति-काव्य' अंग्रेजी लिरिक' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। पाश्चात्य काव्य-समीक्षा में अन्तर्वृत्तिनिरूपक अथवा स्वानुभूति-अभिव्यंजक काव्य को 'लिरिक' कहा जाता है। यह विधा अन्तर्जगत् के नाना-व्यापारों को बाह्याभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए उत्कृष्ट एवं सफल साधन है । इसमें वृत्तियाँ अन्तर्मुख हो जाती हैं और आत्मावस्था का प्रकाशन ही मुख्य होता है। अनुभूति
और भावना की अजस्र-धारा में वस्तु-तत्त्व न जाने बहकर कहाँ चला जाता है। कवि या कलाकार तूष्णीभाव से प्रकृति के कार्य-कलापों का अवलोकन करता होता है कि अचानक कोई घटना घट जाती है जिसके फलस्वरूप उसका अन्तर्मन उद्वेलित हो जाता है और तब जन्म-जन्मान्तरीय संचित भावनाएँ शब्दों की सुन्दर-माला के माध्यम से अभिव्यक्ति पा जाती हैं, उसे ही साहित्य-लोक में गीति-काव्य कहा जाता है। __ सुप्रसिद्ध सौन्दर्य-शास्त्री 'जाफ्राय' ने गीतिकाव्य को काव्य पर्यायार्थक मानते हुए स्वात्मानुभूति एवं आलादजन्यता आदि को उसका प्रमुख तत्त्व स्वीकार किया है। हेगेल के अनुसार गीति-काव्य में शुद्ध कलात्मक रूप से आंतरिक-जीवन के रहस्यों, उसकी आशाओं, उसमें तरंगायित आह्लाद, वेदना, प्रलाप या उन्माद का चित्रण होता है। अर्नेस्ट राइस ने हृदयगत भावों की संगीतमय-अभिव्यक्ति को गीति-काव्य माना है। राइस महोदय के अनुसार गीतिकाव्य में अनुभूति, कल्पना और संगीत-तीन तत्त्वों का होना आवश्यक है। कवि के स्वान्तःकरण में स्थित मार्मिक भावों की शाब्दिक-अभिव्यक्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org