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अश्रुवीणा / ५१ को अनुप्रास कहते हैं। अनुप्रास के अनेक भेद स्वीकृत हैं, कुछ की उपलब्धि यहाँ है। ____ 1. छेकानुप्रास - संयुक्त या असंयुक्त व्यंजनों की एक बार व्यवधान सहित या व्यवधान रहित आवृत्ति छेकानुप्रास है - सोऽनेकस्य सकृत्पूर्वः काव्यप्रकाश 9.106
'दुग्धदिग्धास्यदन्तान्' मेद् ग्ध् आदि अनेक व्यंजनों की एकबार आवृत्ति
परिकर - साभिप्राय विशेषणों के प्रयोग को परिकर अलंकार कहते हैं। विशेषणैर्यत्साकूतैसक्तिः परिकरस्तु सः
काव्यप्रकाश. 10.183 साभिप्रायविशेषणैर्भक्तिः परिकरः
अलंकार सर्वस्व - 32 उक्तैविशेषणैः साभिप्रायैः परिकरो मत.
साहित्यदर्पण 10.57 विशेषणानां साभिप्रायत्वं परिकरः
रसगंगाधर भाग - 3
पृ. 280 इस श्लोक में 'शिशून्' के लिए मुग्धान्, भद्रान्, अज्ञान् आदि अनेक साभिप्राय विशेषणों का प्रयोग हुआ है।
काव्यलिंग - जब वाक्यार्थ या पदार्थ किसी कथन का कारण हो उसे काव्यलिंगालंकार कहते हैं।
काव्यलिंग हेतोर्वाक्यपदार्थता-काव्यप्रकाशः - काव्यप्रकाश10.114 व्यथितमनसः में काव्यलिंगालंकार है।
तर्क के कारण जिसका मन खिन्न हो गया है। तर्क कारण है और मन की खिन्नता कार्य।
छन्द - प्रस्तुत काव्य में मन्दाक्रान्ता छन्द है। भावों की निर्मलता,
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