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८२ / अश्रुवीणा
विशेषावश्यक भाष्य (1048) में लिखा है।
इस्सरियरूवसिरिजसधम्म पयत्तामया भगाभिक्खा।वर्धमान महावीर ऐश्वर्य, ज्ञान, वैराग्य यश आदि से परिपूर्ण थे इसलिए उन्हें भगवान् कहा गया। इस पद में अकिंचन भक्त में अतुल सामर्थ्य उत्पन्न करने की शक्ति है।
- त्वम् स्त्रीजनानाम् अपूर्वम् आशास्थानम्-तुम स्त्रियों के लिए, महिला जगत् के लिए अपूर्व आशास्थान हो। उपचार वक्रता का सुन्दर उदाहरण है। मूर्त के धर्म–'स्थानत्व' का अमूर्त आशा पर आरोप है। ____ अपूर्वम् अद्वितीय। संसार में अभी तक आपके जैसा कोई 'आशास्थान' नहीं था-ऐसा अपूर्वम् पद से अभिव्यंजित हो रहा है। विल्कुलनया, अनोखा, असाधारण। अपूर्वमिदं नाटकम्-अभिज्ञानशाकुन्तल।
आशास्थानम्-आशा के स्थान
आशाः-उम्मिद, तृष्णा (आशरा)।आ समन्तादश्नुत्ते।आ उपसर्ग के साथ अशू-व्याप्तौ धातु से अच् । स्त्रीलिंग में आशा। आशा तृष्णापि-अमरकोश 3.3.216
आशातृष्णायाम्-हैम 2.556
स्थान जगह, स्थल, आश्रय, आधार।
त्वत्तो-भावि=आपके द्वारा अपनी उचित सामर्थ्य को जानकर स्त्री जगत् धन्य हो जाएगा।
स्त्री-महिला। स्त्यै शब्दसंघातयोः (भ्वादिगण) धातु से ड्रट् और डीप् । स्त्यायति गर्भोऽस्याम्। स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम्।
भावि-भूधातु से इनि और णिच् प्रत्यय । भविष्य, होगा। भविष्यति के अर्थ में भावि का प्रयोग हुआ है। रघुवंश (18.38) में ऐसा ही प्रयोग है-लोकेन भावी.।
भावी भविष्यति-मल्लिनाथ।
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