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८४ / अश्रुवीणा
भगवान् चण्डकौशिक की बाँबी पर ध्यान लगाकर खड़े हो गए। चण्डकौशिक विष उगलते हुए बाहर निकला। एक फुकार से सारा वायुमंडल विषाक्त हो गया। कीट-पतंग ढेर हो गए। महावीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, अविचल खड़े रहे। फुकार की निष्फलता को देखकर क्रोधाविष्ट होकर महाश्रमण के पैरों में भयंकर दंशप्रहार किया। भगवान् अविचल रहे । तीन बार दंश प्रहार की निष्फलता के बाद चण्डकौशिक घबराया। भगवान् की कृपा दृष्टि पड़ी। नागराज शांत हो गया। पूर्व जन्म की स्मृति हुई। पूर्णतया भगवान् का शरणापन्न हुआ। आजीवन अनशन व्रत धारण कर आयु पूर्ण कर आठवें स्वर्ग में उत्पन्न हुआ (आवश्यकचूर्णि-279)। भगवान् का सान्निध्य, उनकी कृपादृष्टि प्राप्त होते ही चण्डकौशिक की जीवनशैली ही बदल गयी। धन्यधन्य हो गया। ____ कोपाटोपम् कोपेन आटोपम्। कोप से परिव्याप्त, क्रोधाविष्ट । क्रोध से फैला हुआ, विस्तृत।
आटोप = घमंड के साथ, सूजन फैलाव, विस्तार । द्रष्टव्य आप्टे संस्कृतहिन्दी कोश, पृ. 143।
इस श्लोक में सुन्दर सूक्ति का विनियोजन हुआ है, सत्संगति के प्रभाव का वर्णन है। श्रेष्ठ संगति से नीच भी उत्कृष्ट बन जाता है।-यन् महान् - भवति।
यहाँ पर अर्थान्तरन्यास अलंकार है-यन् महान् सेव्यमानः। काव्यलिंग, अनुप्रास भी है।
संज्ञां लेभे--काव्यलिंग।
मन्दाक्रान्ता छन्द की रमणीयता विद्यमान है। ओज गुण की छटा अवलोकनीय है। ट वर्गीय ध्वनियों के आधिक्य से कवि सर्प की भयंकरता को संसूचित करता है। __ ओजगुण-जिस काव्य-रचना के श्रवण से चित्त का विस्तार तथा मन में तेज की उत्पत्ति हो उसे ओज कहते हैं। इसकी अभिव्यक्ति कठोर तथा परुषवर्णो (ट वर्ग) द्वित्व, संयुक्त, रेफ तथा सामासिक पदों से होती है। इसका प्रयोग वीर, वीभत्स तथा रौद्र रसों में होता है।
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