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८८ / अश्रुवीणा
अनुवाद- भिक्षा लेने के लिए भगवान् महावीर द्वारा हाथों के फैलाये जाने पर अपूर्व हर्षोदय के कारण चन्दनबाला की प्रतिक्षापटु आँखें आनन्द से युक्त हो गयीं (खिल गईं)। जिस कारण से न केवल आँसुओं की पंक्ति साफ हो गई (समाप्त हो गयी) अपितु प्रसार में निपुण उपादान रेखा (आँसुओं के चिन्ह) भी समाप्त हो गये। ___व्याख्या- मन:स्थिति का सुन्दर विश्लेषण कवि ने किया है। दु:ख के दिन में आँसू अविरल थे। भगवान् द्वारा भिक्षा ग्रहण करने के लिए हाथ फैलाने पर चन्दनबाला प्रसन्न हो गयी। आँसू समाप्त हो गये। इस श्लोक में काव्यलिंगा लंकार का सुन्दर उदाहरण बन पड़ा है । आनन्दपूरित चन्दन बाला का रूप निखर गया है, जैसे ग्रीष्म से झुलसा हुआ वनस्पति संसार बरसात की प्रथम फुहार से लहलहा जाता है। चन्दनबाला के मुख-सौंदर्य अनाविल आँखों का रूप लावण्य अत्युत्तम है।
भिक्षां लब्धं-हसितमियता। भगवान् की प्रतिक्षा में उसकी आंखें कब से अधीर हो रही थीं, लेकिन आज मनोवांक्षित की पूर्ति पर खिल गयी। हर्ष का मनोरम बिम्ब बना है। हसितम्-खिला हुआ, विकसित, प्रसन्न । प्रतीक्षारत आँखें खिल गईं।
(१९)
श्रद्धाभाजां भवति मसृणं मानसं यावदेव, श्रद्धापात्रैः प्रचरति समं रूक्षभावोऽपि तावान्। अम्भोवाहो घनरसनतः स्नेह पूर्णेक्षणानि, ग्रीष्मार्तानामचिरमकृपं लङ्घते साशयानि ॥
अन्वय- यावदेव श्रद्धाभाजाम् मानसं मसृणं भवति तावान् श्रद्धापात्रैः समं रूक्षभावोऽपि प्रचरति। घनरसनतः अम्भोवाहो ग्रीष्मार्त्तानाम् साशयानि स्नेहपूर्णेक्षणानि अकृपम् अचिरम् लंघते।
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