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अश्रुवीणा / ९९ पूतभावैकनिष्ठ-पवित्रता की भावना में एकनिष्ठ अर्थात् पवित्रता में विश्वास रखने वाला।
पावनोत्सप्रतीतिम् नेय) - अपनी पवित्र जन्मस्रोत (उत्स) की प्रतीति को पहुंचा देना अर्थात् भगवान् को अपनी पवित्रता की प्रतीति करा देना, तभी तुम पर विश्वास करेंगे। तुम्हारे शब्दों पर भरोसा करेंगे, भावों का आदर करेंगे
इस श्लोक में परिकर, काव्यलिंग अलंकार हैं । माधुर्य गुण के साथ भक्ति की सरिता प्रवाहित है । भावना की पवित्रता, भक्ति का सोपान है । भक्त का प्रथम लक्षण है। पवित्रता का अभिप्राय आन्तरिक विशुद्धि से है।
चन्दनबाला के दूत का जन्म पवित्र वंश में हुआ है। उसका जन्मस्रोत पवित्र है। पावनोत्सप्रतीतिम्। कालिदास का मेघ (यक्ष का दूत) भी संसार के श्रेष्ठ वंश में जन्मा है। यक्ष कहता है -
जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां, जानामित्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोन-मेघदूत 1.6
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(२७) अन्तर्वेदी प्रकरणपटुः किंस्विदत्राऽनुरोध्यो, नैवं भाव्यं सुचिरमलसैः कल्पनागौरवेण। कार्यारम्भे फलवति पलं न प्रमादो विधेयः, सिद्धिर्वन्ध्या भवति नियतं यद् विधेयश्लथानाम्॥
अन्वय- अन्तर्वेदी प्रकरणपटुः अत्र न किंस्वित् अनुरोध्यः एवं भाव्यम् कल्पना गौरवेण सुचिरमलसैः फलवति कार्यारम्भे न पलं प्रमादो विधेयः। यद् विधेयश्लथानाम् सिद्धिः नियतं वन्ध्या भवति।
अनुवाद- भगवान् अन्तहृदय को जानने वाले तथा अवसरज्ञ हैं। इनसे अनुरोध की क्या आवश्यकता है? इस तरह समझकर कल्पना के भार से बहुत
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