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अश्रुवीणा /१०१ रहता है, चाटुकारों (झूठी बड़ाई करने वालों) से बचने वाला व्यक्ति अवश्य ही सफल होता है। समाज-व्यवस्था के लिए इसे उपयोग किया जा सकता है। चाटुकारों से ही परिवार, समाज याराष्ट्र बिगड़ता है इसलिए उनसे सदा सावधान रहना चाहिये ।
आलोक आँख, दृष्टि, दर्शन, पहलु, प्रकाश, ज्ञान प्रकाश। अमल-पवित्र, मलरहित। वसति-रहना, निवास, घर। पुण्य-पवित्र, पुनित, अच्छा, भला, रुचिकर।
पूज्-पवने (क्रयादि) धातु से उणादि सूत्र पूजो यण्णुग हस्वश्च (5.15) से यण् णुग् और हस्व करने पर पुण्य बनता है। पुनातीति । जो पवित्र कर दे वह पुण्य है। 'पुण कर्मणि शुभे' धातु से भी क तथा यत् प्रत्यय करने पर पुण्य बनता है। जो शुभ है वह पुण्य है। भगवान् के लिए यह 'पुण्य' शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है जो साभिप्राय है। अर्थात् भगवान् संसार को पवित्र करते हैं। इसलिए पुण्य हैं अथवा शुभ, मंगल, के आकर या मंगलस्वरूप हैं इसलिए पुण्य विशेषण सार्थक है।
महर्षि-महान् ऋर्षि। भगवान् का विशेषण। ऋर्षि सत्यद्रष्टा होता है। ऋषिः दर्शनात्-यास्क निरुक्त ऋषयः सत्यवचसः -अमरकोश
ऋषति धम्ममिति ऋषिः-जो धर्म को जानता है अथवा धर्म में गति करता है वह ऋषि है। उत्तराध्ययन चूर्णि पृ. 207।
ऋषति जानाति तत्त्वं ऋषिः, दर्शनात् वा ऋषि:-अभिधान चिंतामणि कोश, पृ. 14
इस श्लोक में अर्थांतरन्यास अलंकार है। पुण्य और महर्षि दो साभिप्राय विशेषण के प्रयोग से परिकर अलंकार भी है।
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