________________
५६ / अश्रुवीणा
प्रवरचतुरम् - उत्कृष्टकुशलम्, कुशलात् कुशलम् -कुशल से कुशल व्यक्ति।
अनादेयवाक्यम् - अग्रहणीयवाक्यम् अविश्वनीय वाक्यम् वा। जिसके वाक्य, वचन पर विश्वास नहीं हो सके अथवा जिसका वचन ग्रहणीय नहीं है वह अनादेय वाक्य है। श्रद्धा के नहीं होने पर उत्कृष्ट व्यक्ति भी आदर का पात्र नहीं बन पाता है।
पूज्यापूज्यान् - तवैव मानं विभजति-यह पूज्य है, यह अपूज्य है, यह श्रेष्ठ है। यह लघु है, यह सज्जन है यह असज्जन है, इस निर्णय में श्रद्धा का रहना (भाव) और न रहना (अभाव) ही मानदंड बनता है। श्रद्धापात्र व्यक्ति श्रेष्ठ और पूज्य होता है तथा जिसके प्रति श्रद्धा का अभाव हो वह अनादरणीय हो जाता
यहाँ पर मूर्त के धर्म -- 'मानदण्ड' का अमूर्त (भाव) पदार्थ श्रद्धा पर आरोपित किया गया है। मानदण्ड तो कोई मूर्त पदार्थ ही हो सकता है लेकिन यह अमूर्त पदार्थ श्रद्धा को मानदण्ड बनाया गया है। उपचार वक्रता का उत्कृष्ट उदाहरण है। ___ माधुर्य गुण का रमणीय सौन्दर्य विद्यमान है। सम्पूर्ण अश्रुवीणा में माधुर्य एवं प्रसाद गुण का आधिपत्य है। चित्त को द्रवीभूत बनाने वाले आह्लाद को ही माधुर्य की संज्ञा दी है। __ मधुर वर्ण, सानुनासिक वर्ण तथा छोटे-छोटे समासों के प्रयोग से माधुर्य की उत्पत्ति होती है। आचार्य मम्मट ने माधुर्य - व्यंजक वर्गों का निर्देश किया
मनि वर्गान्त्यगाः स्पर्शा अटवर्गा रणौ लघ।
अवृत्तिर्मध्यवृत्तिर्वा माधुर्ये घटना तथा ॥ अर्थात् ट वर्ग (ट-ण) को छोड़कर क से लेकर म तक का स्पर्श वर्ण जब अपने वर्ग के अन्तिम वर्ण से युक्त होते हैं। ह्रस्व स्वर युक्त रकार एवं णकार तथा समासरहित पदावली या अल्प समास युक्त पदावली माधुर्य गुण व्यंजक मानी जाती है। वक्रोक्तिकार ने द्विरुक्त त्, ल, न् और र्, ह् आदि से संयुक्त य और ल को भी माधुर्य व्यंजक माना है । प्रस्तुत श्लोक में स्पर्श वर्गों के अतिरिक्त,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org