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७४ । अश्रुवीणा
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धन्यं धन्यं शुभदिनमिदं विद्युता घोतिताशः, सिञ्चन्नुर्वी नवजलधर : कर्षके णाद्य दृष्टः। तापः पापोऽगणितदिवसैरन्तरुयाः प्रविष्टः, श्वासानन्त्यान् गणयतितमा निःश्वसन्तुष्णमुच्चैः॥
अन्वय- इदम् शुभ दिनम् धन्यम्-धन्यम् । विद्युताद्योतिताशः नवजलधरः उर्वी सिञ्चन् अद्य कर्षकेण दृष्ट: अगणित दिवसै: उर्व्याः अन्तः प्रविष्ट: पापो तापः उष्णमुच्चैः निश्वसन् अन्त्यान् श्वासन् गणयतितमाम्।...
अनुवाद- अहो! आज का शुभ दिन धन्य है। आज बिजली से दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ नव जलधर बादल धरती को सिंचित करता हुआ कृषक के द्वारा देखा गया। (नये बादलों ने बरसात कर दी) बहुत दिन से पृथ्वी के अन्दर में प्रविष्ट (ग्रीष्म ऋतु का) दुष्ट ताप ऊँचे और गर्म आहे छोड़ता हुआ अंतिम श्वासों को गिन रहा है।
व्याख्या- भगवान को देखकर दु:खी चन्दनबाला कृत्य-कृत्य हो गयी। अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार के माध्यम से भगवान के आवागमन पर चन्दनबाला की मनोदशा का सुन्दर चित्रण किया गया है। धरती के ब्याज से चन्दनबाला की मार्मिक कथा का निर्देश मिलता है। भगवान रूप नवजलधर ने जब उर्वी रूपचन्दना पर कृपा की बरसात की तो उसे ऐसा लगा कि उसके अन्दर विद्यमान सारे पाप ताप अब समाप्त हो जाएँगे । मम्मट ने अप्रस्तुत प्रशंसा का लक्षण दिया है- अप्रस्तुत प्रशंसा या सा प्रस्तुताश्रया काव्य प्रकाश 10.98 __ अप्रस्तुत (अप्रासंगिक) के वर्जन से प्रस्तुत (प्रासंगिक) का आक्षेप कर लिया जाता है वह अप्रस्तुत प्रशंसा है। यहाँ मेघ का, वर्णन अप्रस्तुत है भगवान का प्रस्तुत । नवजलधर के द्वारा भगवान का, उर्वी द्वारा चन्दनबाला का, जलधारा के द्वारा कृपा आदि का आक्षेप किया गया है। काव्यलिंगा लंकार भी है। वर्षा के कारण ताप अन्तिम साँसें गिन रहा है। उपचार वक्रता का सुन्दर उदाहरण है। मनुष्य के धर्म-साँस लेना आदि का ताप पर आरोप किया गया है। 'मानों अन्तिम साँसें गिन रहा है' ऐसा अर्थ करने पर उत्प्रेक्षा अलंकार की उपस्थिति
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