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४८ / अश्रुवीणा
दुग्धदिग्धास्यदन्तान् - दुग्ध के द्वारा जिनके अभी भी मुख और दाँत सिक्त हैं। यह पद शिशून्' का विशेषण है। द्वितीया बहुवचन का रूप है । जो दूधमुँहे बच्चे होते हैं वे सांसारिक प्रपंच से सर्वथा विरत रहते हैं। श्रद्धा उन्हीं का वरण करती है।
दुग्धेन - गो अथवा माता के दुग्ध से। दुग्धं क्षीरं पयः - अमरकोश 2.9.51 दुग्धं क्षीरे पूरिते च - हेमचन्द्र 2.245 दुह् + क्त प्रत्यय नपुंसकलिंग। दिग्ध - दिह् + क्त। सना हुआ, लिपा हुआ। कालिदास ने मालविकाग्निमित्र में लिखा है - दिग्धोऽमृतेन च विषेण च पक्ष्मलाक्ष्या गाढं निखात इव मे हृदये कटाक्षः-मालविकाग्नि मित्र 1/29
आस्य = मुख, अस गति दीप्त्यादानेषु भ्वादिगणीय धातु से ण्यत् प्रत्यय से आस्य बनता है। आस्य शब्द ऐसे मुख का वाचक या बिम्ब प्रस्तुत कर रहा है जो चंचल, दीप्तिमान और तेज सम्पन्न हो। बालक के मुख की निसर्गता एवं रमणीयता को धोतित करने के लिए 'आस्य' शब्द का प्रयोग किया गया है। 'आस्य'शब्द से जिस उत्तम अवस्था की अभिव्यक्ति हो रही है वैसी अभिव्यक्ति मुख, आनन, वदन आदि पर्याय शब्दों से संभव नहीं है। पयार्यवक्रता का श्रेष्ठ उदाहरण है। कवि की महानता उद्घाटित हो रही है । वक्त्रास्ये वदनं तुण्डमाननं लपनं मुखम् -- अमरकोष 2.6.89 । ___ आस्यन्दते अम्लादिना प्रस्रवति। आस्यन्दते वान्नादिना द्रवीक्रियते । अर्थात् आपूर्वक स्यन्दू प्रस्रवणे धातु से डप्रत्यय के योग से आस्य बना है। असु क्षेपणे से भी आस्य शब्द बन सकता है -अस्यन्ते वर्णा येन अस्यते । वाऽस्मिन् ग्रासः। कृत्यल्युहो बहुलम् (अष्टाध्यायी 3.3.113) से ण्यत् प्रत्यय हुआ है।
मुग्धान् - यह शिशून् का विशेषण है । सहज, सरल, भोला-भाला भवभूति ने भोलेपन को द्योतित करने के लिए उत्तर रामचरित में मुग्ध शब्द का प्रयोग
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