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अश्रुवीणा का गीतिकाव्यत्व / ३१
पार्वती का रुदन इतना विस्फारण और विकास को प्राप्त हो चुका है कि सम्पूर्ण जड़-चेतन प्राणी शिव-शिव करने लगे। सब कुछ शिव-मय बन गया
उपात्तवर्णे चरिते पिनाकिनः सवाष्पकण्ठस्खलितैः पदैरियम्। अनेकशः किन्नरराजकन्यका वनान्तसङ्गीतसखीररोदयत् ॥
वैसे ही चन्दना की सिसकियों से समस्त आकाश व्याप्त हो गया। महावीर जैसे सर्वस्व त्यागी पुरुष भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे।
ध्येयं सम्यक् क्वचिदपि न वा न्यून-सज्जा भवेत, घोषाः पुष्टा बहुलतुमुलास्ते पुरश्चारिणः स्युः। आकर्षे युर्गमन-नियतं ये प्रभोानमत्र,
यन् मूकानां न खलु भुवने क्वापि लभ्या प्रतिष्ठा 2 10. आँसू का गीत-अश्रुवीणा आँसू का गीत है। प्राप्तव्य की प्राप्ति का श्रेष्ठ एवं सशक्त माध्यम आँसू हैं। बिना रोए प्रियतम मिलता कहां है? जिसने रोया उसी ने पाया। प्रियतम की शय्या उस टापू में स्थित है, जिसके चारों तरफ
आँसुओं का समुद्र लहराता है। पार्वती ने आँसू के इस महासमुद्र को पारकर शिवजी को पाया। पार्वती की शिवध्वनि और अश्रुधारा ने सम्पूर्ण वन-प्रदेश को रुला दिया। यक्ष रोया। उसके रुदन से वन्य-प्रान्त भी रोने लगा। गजेन्द्र, कुन्ती, द्रौपदी, भीष्म, गोपियाँ आदि सब रोये। सूर, मीरा, तुकाराम, चैतन्य महाप्रभु आँसुओं की धारा पर बैठकर ही प्रभु के घर जा सके।
चन्दनबाला को भी प्रभु कैसे मिलते? जब तक उसकी निठोली आँखों से आँसू की तरंगिनी तरंगायीत नहीं हुई-प्रभु कहां मिले?
चाहे शकुन्तला-दुष्यन्त मिलन हो या भवभूति की सीता का रामगृह पुनरागमन सबने आँसू का ही सहारा लिया। आँसू जीवन के लिए महदुपकारक हैं। जब सब कोई साथ छोड़ देते हैं तब आँसू ही साथ होते हैं। 24 गोपियों की दशा भी कृष्ण के वियोग में कुछ ऐसी ही हो गयी थीं
पादौ पदं न चलतस्तव तब पादमूलात् । यामः कथं व्रजमथो करवाम किं वा ॥25
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