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अश्रुवीणा का गीतिकाव्यत्व / ३३ अश्रुवीणा की नायिका अपने आँसू को ही दूत बनाती है । आपात्काल में आँसू के अतिरिक्त उसके पास कुछ अवशेष था ही कहां? उसका दूत समर्थ है, पवित्र है। उसको पाकर अकेला व्यक्ति भी विपत्ति के भार से मुक्त हो जाता है। उसमें अद्भुत शक्ति है। वह अपने दूत से कहती है-हे आँसू! यह ठीक है कि यतिपति पवित्र है और पवित्रता में विश्वास करते हैं। तुम भी कम पवित्र नहीं हो। उस प्रभु को विश्वास दिलाना कि हमारा जन्म भी पवित्र स्रोत से हुआ है
स्मर्तव्यं तद्यतिपतिरसौ पूतभावैकनिष्ठो, नेयस्तस्मादृजुतमपथैः पावनोत्स प्रतीतिम् । साहाय्यार्थं हृदयमखिलं सार्थमस्तु प्रयाणे,
तस्योदघाटः क्षणमपिचिरं कार्यपाते न चिन्त्यः।" कवि दौत्यकार्य मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि पर करवाता है । दूत के उच्चकुल का वर्णन कर उसके सामर्थ्य की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया जाता है। हनुमान को उनके सामर्थ्य की याद नहीं दिलायी जाती तो वे अलङ्थ्य समुद्र को कैसे लाँघ जाते? कालिदास का यक्ष और महाप्रज्ञ की चन्दनबाला भी इसी पद्धति का आश्रयण करती है।
12. बिम्बात्मकता-यह गीति-काव्य का प्रमुख वैशिष्ट्य है। कवि वर्णनीय विषय का अपनी कला के द्वारा स्पष्ट चित्र अंकित कर देता है। अश्रुवीणा में बिम्बात्मक-चारूता पद-पद में विद्यमान है। श्रद्धा और तर्क का बिम्ब द्रष्टव्य है
अन्धा श्रद्धा स्पृशति च दृशं तर्क एषाऽनृता धीः, श्रद्धाकाञ्चिद् भजति मृदुतां कर्कशत्वञ्च तर्कः। श्रद्धा साक्षात् जगति मनुते कल्पितामिष्टमूर्ति,
तर्कः साक्षात् प्रियपिजनं दीक्षते संदिहानः॥ 13. छन्दोजन्यमाधुर्य-गीति-काव्य के लिए छंद-बद्धता आवश्यक मानी गयी है। चादयति आह्लादयतीति छंद' अर्थात् जो आह्लादित करे, उसे छंद कहते हैं। मधुरिम-छंदों में ही गीति-लताएँ लहलहाती हैं । मन्दाक्रान्ता, शिखारिणी, इन्दिरा आदि छन्द गीति-काव्य के लिए उपयुक्त माने गए हैं । विश्ववन्द्य कवि
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