Book Title: Ashruvina
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ का आदेश दिया।सैनिकों ने जनता को लूटना आरम्भ किया। कुछेक ने धन लूटा, कुछेक ने जेवर लूटे और कुछेक ने स्त्रियों को हस्तगत किया। एक रथिक ने दधिवाहन की रानी धारिणी और राजकुमारी वसुमती का अपहरण किया। धारिणी वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक की पुत्री और भगवान् महावीर के मामा की बेटी बहन थी। उसका सतीत्व विश्रुत था।रथिक उससे अपनी भोगलालसा की पूर्ति करना चाहता था, किन्तु उसने उसको ऐसा अवसर नहीं दिया। उसने रथिक की विकारपूर्ण आकृति और चेष्टाएं देखकर सहसा अपने हाथ से अपनी जीभ खींच ली और प्राणों का बलिदान कर दिया। इस घटना से रथिक स्तब्ध रह गया। वह डरा कि कहीं वसुमती भी अपनी माता के मार्ग का अनुसरण न कर ले। उसके होठ काँपने लगे। उसने वसुमती को कोमल स्वर से आश्वासन दिया-वहन! डर मत, अब मेरी काम-वासना शान्त हो गई है। मैं तुझे कोशाम्बी जाकर बेचना चाहता हूँ। मेरे हृदय में कोई विकृति नहीं है। रथिक ने उसे बाजार में बेचा। एक वेश्या ने उसे खरीदा। वसुमती ने किसी भी तरह वेश्या का निन्दनीय कृत्य स्वीकार नहीं किया। वेश्या ने फिर बाजार में बेचा। धनावह नामक सेठ ने उसे खरीद लिया। वह उसके घर में दासी का काम कर समय-यापन करने लगी। सेठ ने उसका नाम चन्दना रखा। एक बार धनावह की पत्नी को सन्देह हुआ कि मेरा पति कहीं इसे अपनी पत्नी न बना ले। किसी काम के लिए सेठ दूसरे गाँव गया। सेठानी ने अवसर देखकर चन्दनबाला का शिर मुण्डन किया। उसके हाथ-पैर में जंजीर डाली और उसे कोठे में डाल वह दूसरी जगह चली गई। उधर भगवान् महावीर कोशाम्बी के घर-घर में जाकर भी भिक्षा नहीं ले रहे थे। पाँच महीने और पच्चीस दिन बीते । छब्बीसवें दिन भगवान् ने धनावह के घर में प्रवेश किया। भगवान् ने देखा-यहाँ मेरा अभिग्रह पूर्ण होगा। भगवान् का अभिग्रह था : "मैंभिक्षा तभी लूँगा यदि दान देने वाली 1-राजा की पुत्री,2-अविवाहित और 3-बाजार से खरीदी हुई हो, 4-जिसका शिर मुण्डित हो और 5-उसमें दाग लगे हों, 6-7-जिसके हाथ-पैर जंजीरों से जकड़े हों, 8-जिस जिसका एक पांव घर की देहली के अन्दर हो और दूसरा बाहर, 10--तीसरे प्रहर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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