Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 23
________________ 3 के वर्ग को ऊपर की संख्या 27 में घटाते हैं, 18 शेष बचता है। अत: 27 को मिटाकर उसके स्थान पर 18 रखते हैं। साथ ही साथ 3 को मिटाकर उसके स्थान में 3 का दूना अर्थात 6 रखते हैं - 1856 46 अब 46 को एक स्थान दाहिनी ओर हटाकर लिखते हैं - -1-1 1856 46 इसके बाद 185 को 46 से भाग देते हैं, 4 लब्धि मिलती है और 1 शेष बचता है। 4 को 46 के दाहिनी और रखते हैं और 185 को मिटाकर उसके स्थान पर 1 रखते हैं। 16 464 अब 4 के वर्ग को 16 में घटाते हैं, शेष ० बचता है। अतएव 16 को मिटा देते हैं। इसके बाद 4 को दूना करके रखते हैं। 468 यह द्विगुणित वर्गमूल है। इसको आधा करने पर 234 मिलता है, जो इष्ट वर्गमूल है। घन/घनमूल किसी संख्या का घन ज्ञात करने के बारे में श्रीधर का वर्णन निम्न प्रकार से 'अन्त्य (अर्थात् अन्तिम अंक) का घन लिखो; एक स्थान आगे, अन्त्य के वर्ग को त्रिगुणित आद्य (अर्थात् उपान्तिम अंक या पूर्व) से गुणा करके जो आये वह लिखो ; (इसके एक स्थान आगे) आद्य के वर्ग को अन्त्य से और तीन से गुणा करके जो आये वह लिखो; और (इसके एक स्थान आगे) आद्या का घन भी लिखो। इस प्रकार से प्राप्त होने वाली संख्या (अन्त्य और आद्य दो अंकों से बनी हुई संख्या का ) घन है। श्रीधर ने घन निकालने का एक अन्य सूत्र भी दिया है - '(किसी दी हुई संख्या का) घन उस श्रेढी के योग के तुल्य होता है जिसके पद, 0 आदि और 1 प्रचय वाली श्रेढी में अन्तिम पद को त्रिगुणित उपान्त्य पद से गुणा करके 1 जोड़ देने से, बनते हैं। 10 सूत्र - n' = [3r(r-1) + 1] श्रीधर के शब्दों में - 'तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन होता है।' a = axaxa घनमल ज्ञात करने के बारे में श्रीधर द्वारा दिया गया विवरण इस प्रकार हैअर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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