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चित्र. 2 साइची इशीजावा का दृष्टिकोण, वर्तमान को निगलते हुए काल
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वर्तमान
कॉल
भविष्य
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समय को फोटोग्राफी
बर्लिन से हेल्मा सेन्डर्स ग्राम्स ने बतलाया कि सिनेमा ने द्वारा न केवल बांधकर गिरफ्त में लिया है बल्कि गति दर्शायी है। पहले तो ठहरे हुए स्केच आये जिनसे केन्वस पर क्षण ठहरे से लगे बाद में चलचित्र ने गति दर्शायी फोटोग्राफी ने यह सब सहज सभंव कर दिया ट्रिक फोटोग्राफी ने ठहरे क्षणों के घटित बिम्बों को क्रम में पिरोकर इसे बनाया। इस प्रकार सिनेमा ने समय के क्षणों को न सिर्फ दिखलाया बल्कि दृष्टि में दोहराने हेतु भी बांधा ।
क्योटो
(जापान) से साइची इशीजावा ने बौद्ध सिद्धान्तों के अन्तर्गत समय अथवा काल को ऐसा मनुष्य दर्शाया है जो सब निगलता जाता है। जिसे वह निगल चुका वह भूत है। सदैवही वर्तमान में वह निगल रहा है। जो नहीं निगला गया है वह भविष्य है, जो धीरे-धीरे वर्तमान बन रहा है। यह अनादि और अनंत है। (देखें चित्र)
जागना इसकी अनुभूति तीन काल खंडों में बंट
जीया हुआ समय तो स्वयं मनुष्य की निजी कृति है दिलाता है। वही सच्चा जीया हुआ समय है। स्वयं का अस्तित्व गया है। लंबे उपयोग में ही इसे भूत, वर्तमान और भविष्य में बांटना संभव है। अतः समय निरन्तर चलने वाला लंबा योग है, कपड़े के थान की तरह, जिसमें से हम जीवन की ड्रेस के लिये जितना आवश्यक हो उतना कपड़ा काट लेते हैं हम लम्हे भी काट कर पा सकते हैं और एक छोटी सी घटना भी सकते हैं। यह भी एक कला है। कदाचित फिल्म को लौटायें तो लौट सकते हैं।
लंबी फिल्म में से लंबी फिल्म में उतार पिछले समय में भी
जापान से आये एक वक्ता ने होनी और घटना में अन्तर बतलाया। 'होनी' अभी भविष्य में होना है जबकि 'घटना' घट चुकी है शब्दों से समय की दोहरी अभिव्यक्ति दर्शायी जिसमें वर्तमान इतना सूक्ष्म है कि कब वह भूत बनकर फिसल गया समझ नहीं आता। फिर भी अनुभूतियाँ प्रतिपल वर्तमान की रहती है। यही समय की जटिलता है।
दिल्ली के प्रो. वीनादास ने 'स्मृति ही समय के अस्तित्व को दर्शाती है' यह बतलाया। वह भारतीय मिथ में बहुत दूर तक पहुँच सकती है। कभी-कभी तो पिछले जन्मों तक जिस प्रकार अचानक विश्वास न आने से मिथ कहलता है इन्हीं स्मृतियों में कभी पुरुष प्रधानता झलकती है, कभी नारी की प्रधानता और फिर समूचा भूतकाल उसी परम्परा के प्रभाव में आंक लिया जाता है। भरत ने जब राम और दशरथ के प्रति
अर्हतु वचन, 14 (23). 2002
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