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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
प्रगति आख्या सिरिभूवलय अनुसंधान परियोजना
बढ़ते कदम - डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज*
आचार्य श्री कुमुदेन्दु (9 वीं शदी) द्वारा रचित सिरिभूवलय अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रंथ का परिचय जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी को दिया गया तो उन्होंने इसको संसार का आठवाँ आश्चर्य बताया और इसे राष्ट्रीय महत्व का कहकर इसकी पाण्डुलिपि राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित करवाई। इस ग्रन्थराज में 18 महाभाषाएँ तथा 700 कनिष्ठ भाषाएँ गर्भित हैं। अंकराशि से निर्मित यह ग्रन्थ अद्वितीय सिद्धान्तों पर आधारित है, विज्ञान का भी यह अभूतपूर्व ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ में बड़ा वैचित्र्य है। इसमें 27 पंक्ति (लाइनें) और 27 स्तंभ (कालम) में 729 खाने युक्त कई टेबल हैं, खानों में 1 से 64 तक अंकों का प्रयोग किया गया है, अंकों से ही अलग - अलग अक्षर बनते हैं, उन अक्षरों से इस ग्रन्थ के श्लोक पढ़ने के कई सूत्र हैं, उन्हें "बंध" कहा जाता है। बंधों के अलग - अलग नाम हैं। जैसे - चक्रबंध हंसबंध, पद्मबंध, मयूरबंध आदि। बंध खोलने की विधि का जानकार ही इस ग्रंथ का वाचन कर सकता है। इसके एक - एक अध्याय के श्लोकों को अलग - अलग रीति से पढ़ने पर अलग - अलग ग्रंथ निकलते हैं। इसमें ऋषिमंडल, स्वयंभू स्तोत्र, पात्रकेशरी स्तोत्र, कल्याणकारक, प्रवचनसार, हरिगीता, जयभगवद्गीता, प्राकृत भगवद्गीता, संस्कृत भगवद्गीता, कर्नाटक भगवद्गीता, गीर्वाण भगवद्गीता, जयाख्यान महाभारत आदि के अंश गर्भित होने की सूचना तो है ही साथ ही अब तक अनुपलब्ध स्वामी समन्तभद्राचार्य विरचित महत्वपूर्ण ग्रन्थ गंधहस्ती महाभाष्य के गर्भित होने की भी सूचना है। इसमें ऋग्वेद, जम्बूदीवपण्णत्ती, तिलोयपण्णत्ती, सूर्यप्रज्ञप्ति, समयसार तथा पुष्पायुर्वेद, स्वर्ण बनाने की विधि आदि अनेक विषय गर्भित हैं। भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि (विशेष उपदेश) जैसे विभिन्न भाषा - भाषियों को अपनी-अपनी भाषा में सुनाई देती थी, ठीक वही सिद्धान्त इसमें अपनाया गया है, जिससे एक ही अंकचक्र को अलग-अलग तरह से पढ़ने पर अलग- अलग भाषाओं के ग्रंथ और विषय निकलते
इस पर अनुसंधान के परिणाम स्वरूप अनेक विलुप्त ग्रंथ प्रकाश में आएंगे। आज की चिकित्सा पद्धति से भी उच्च चिकित्सा पद्धति प्रकाश में आने की संभावना है, जो संपूर्ण मानव जाति को कल्याणकारी होगी। तात्कालिक 718 भाषाओं में निबद्ध हमारी संस्कृति उदघाटित होगी जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आएँगे।
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ ने 'सिरि भूवलय अनुसंधान परियोजना' पर 1 अप्रैल 2001 से विधिवत कार्य प्रारंभ किया है। अब तक का प्रगति विवरण इस प्रकार है - चार शोध यात्राएँ
सिरिभूवलय पर अब तक अनुसंधान का प्रयत्न करने वाले मनीषियों, संस्थाओं से उनके द्वारा किए प्रयत्नों की जानकारी, संभावित सहयोगी विद्वानों के सम्पर्क, परियोजना सम्बन्धित पाण्डुलिपि आदि के अन्वेषण हेतु उक्त अवधि में डॉ. महेन्द्रकुमार जैन "मनुज'
अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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