Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 132
________________ सिख, बौद्ध व जैन को हिन्दू से अलग धर्म मानने का सुझाव सिख, बौद्ध एवं जैन - मतावलंबियों की अलग पहचान को मान्यता देने की मंशा से संविधान समीक्षा आयोग ने सिफारिश की है कि सिख, बौद्ध और जैन पंथ को हिन्दू मत से 'अलग-धर्म' का माना जाना चाहिए और कहा कि इन पंथों के मतावलंबियों को हिन्दुओं से जोड़नेवाले संवैधानिक प्रावधान को खत्म कर देना चाहिए। गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 25 की मौजूदा स्पष्टीकरण 2 (अन्त:करण की आजादी व स्वतंत्र - व्यवसाय, आचरण व धर्म-प्रचार) के तहत कहा गया है कि हिन्दुओं के संदर्भ में सिख, बौद्ध व जैन धर्म मानने वाले लोगों को भी शामिल करके अर्थ लगाया जाएगा और हिन्दुओं की धार्मिक - संस्थाओं का आशय भी उसी तरह होगा। सरकार को सौंपी गई न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया आयोग की सिफारिश के अनुसार संविधान के अनुच्छेद-25 के स्पष्टीकरण-2 को संविधान से हटाने के लिए कहा गया है। आयोग ने यह भी कहा है कि अनुच्छेद-25 में एक उपनियम जोड़ दिया जाए, जिससे जो बात इस अनुच्छेद के एक नियम में नहीं की गई है और इससे किसी मौजूदा - कानून का क्रियान्वयन प्रभावित न होता हो, या सामाजिक - कल्याण व सुधार के लिए कोई कानून बनाने से राज्य को रोकता न हो, या जो सार्वजनिक प्रकृति की हिन्दू धार्मिक - संस्थाओं को हिन्दू- समुदाय के सभी वर्गों के लिए खोलता हो। आयोग ने इसी क्रम में आगे यह भी सुझाव दिया है कि अनुच्छेद-25 के नियम (2) के उपनियम (बी) को इस प्रकार पढ़ा जाए कि सामाजिक कल्याण व सुधार के लिए या हिन्दू, सिख, जैन व बौद्धों की सार्वजनिक महत्ववाली सभी धार्मिक - संस्थाओं का दरवाजा इन धर्मों के सभी वर्गों व समुदायों के लिए खोल दिया जाये। सर्वोदय शिक्षण शिविर में वर्गोदय का पाठ न पढ़ायें -गणिनी ज्ञानमती भगवान महावीर जयंती महोत्सव के पंचदिवसीय कार्यक्रम के अन्तर्गत पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के ससंघ सान्निध्य में फिरोजाबाद शहर में 27 अप्रैल 2002 को आयोजित 'रइधू पुरस्कार' समारोह (श्री श्यामसुन्दरलाल शास्त्री श्रुत प्रभावक न्यास द्वारा) में पुरस्कार विजेता प्रख्यात समाजसेवी जीवनदादा पाटील (महा.) को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य माताजी ने उनके द्वारा आयोजित सर्वोदय शिक्षण शिविरों में वर्गोदय का पाठ न पढ़ाये जाने की अपनी आंतरिक भावना व्यक्त की। पूज्य माताजी ने कहा कि आज समाज भिन्न-भिन्न साधुओं से सम्बन्धित भक्तों रूपी वर्गों में विभक्त होता चला जा रहा है, यह प्रवृत्ति सर्वथा अवांछनीय है। श्रावकों के लिये तो सभी दिगम्बर जैन साधु-साध्वी पूजनीय हैं, अत: शिक्षा शिविरों के माध्यम से तो इस प्रवृत्ति को कतई बढावा नहीं दिया जाना चाहिये। श्री जीवन दादा पाटील ने बड़े हर्ष एवं उत्साहपूर्वक तीन बार पूज्य माताजी के चरणों में नमोस्तु करके इस संकल्प को ग्रहण करते हुए पूज्य माताजी के प्रति अपने श्रद्धाभाव व्यक्त किये। । ब्र. (कु.) स्वाति जैन, संघस्थ कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार - 2002 एवं __ ज्ञानोदय पुरस्कार - 2002 हेतु आवेदन पत्र कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ कार्यालय में उपलब्ध हैं। आवेदन की अन्तिम तिथि 31.12.2002 अर्हत् वचन, 14 (2-3), 2002 130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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