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वह प्रति आज भी ज्ञानपीठ में सुरक्षित है। किन्तु मूलप्रति शायद भारतीय ज्ञानपीठ में कहीं गुम हो गई। भारतीय ज्ञानपीठ के अनुरोध पर हमने यह प्रति उसे कुछ माह पूर्व उपलब्ध करा दी है। इसकी छायाप्रति यहाँ भी उपलब्ध है। इसके सुन्दर आकर्षक रूप में प्रकाशित करने की आवश्यकता है। एतदर्थ आवश्यक चित्रों को उपलब्ध कराने एवं सम्पादन कार्य हेतु हम प्रस्तुत हैं। यदि ट्रस्ट संसाधन उपलब्ध कराये तो कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ प्रकाशित कर सकता है।
9. मुझे यहाँ ट्रस्ट के पदाधिकारियों एवं समाज के वरिष्ठजनों से ज्ञात हुआ कि परस्पर कुछ अविश्वास है, सहयोग वांछित स्तर पर नहीं मिल रहा है। ट्रस्ट के संसाधनों की सीमा है अतः उक्त सुझावों के क्रियान्वयन हेतु वर्तमान ट्रस्ट द्वारा ही व्यापक आधार वाली जीर्णोद्धार एवं विकास समिति गणित की जाये। समिति का स्वरूप अखिल भारतीय होना चाहिये। वह अधिकार सम्पन्न भी हो किन्तु वह ट्रस्ट से परामर्श कर विकास कार्य करे।
संगोष्ठी का समापन सत्र दोपहर 2.30 चेम्बर ऑफ कामर्स के भवन में आरंभ हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री सुभाष जैन ने की डॉ. हरिवल्लभ माहेश्वरी जी ने इन्टेक द्वारा सम्पन्न किये गए गोपाचल सम्बन्धी कार्यों पर प्रकाश डाला एवं बताया कि अभी भी गोपाचल का कुछ हिस्सा पुरातत्व की संरक्षित सूची में नहीं है जिसका विकास जैन समाज अपने हाथ में ले सकती है। डॉ. अशोक जैन ने गोपाचल की मूर्तियों के रखरखाव के वैज्ञानिक तरीकों की ओर सभा का ध्यान आकृष्ट किया। डॉ. अभयप्रकाश जैन ने गोपाचल की धरोहर को सुरक्षित करने, सूचीकरण एवं नष्ट हुए मंदिरों को चिन्हित करने एवं वैज्ञानिक तरीकों से उसके संरक्षण पर बल दिया। पं. नीरज जैन ने पुरातत्व के माध्यम से एवं उसके सहयोग से किस प्रकार जीर्णोद्धार के कार्य किए जा सकते हैं, इस सम्बन्ध में अपने वक्तव्य को प्रस्तुत करते हुए पुरातत्व विभाग की नीतियों से सभी को अवगत कराया।
डॉ. अभयप्रकाश जैन ने सभी आगन्तुक अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया । वर्षायोग समिति की ओर से सभी विद्वानों को शॉल, श्रीफल एवं माल्यार्पण से सम्मान किया गया। पं. नीरज जैन, सतना को संगोष्ठी में 'वाणी भूषण' की उपाधि से अलंकृत किया गया।
पूज्य मुनिश्री ने अपने समापन मंगलाशीष में कहा कि संगोष्ठी के माध्यम से जो भी बिन्दु सामने आये हैं हमें उन पर अमल करना चाहिए।
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अर्हत् वचन, 14 (23) 2002
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