Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 118
________________ मूर्तियों को शीशविहीन कर खण्डित किया तब जैन समाज की चुप्पी ही गोपाचल के लिए कलंक बन गई थी और तब से आज तक इस क्षेत्र का क्षरण ही हो रहा है। आपने उपस्थित जनसमुदाय को गोपाचल जीर्णोद्धार के लिए अपना सब कुछ समर्पित करने की प्रेरणा प्रदान की। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र दोपहर 2.30 बजे चेम्बर ऑफ कामर्स भवन में आयोजित किया गया। पूज्य मुनि श्री के साथ ही मंच पर आर्यिका विपश्यना श्रीजी आर्यिका संघ के साथ मंच पर विराजमान थी। सत्र की अध्यक्षता श्री शिवकुमार विवेक (संपादक दैनिक भास्कर) ने की एवं श्री वीरेन्द्र गंगवाल जी (अध्यक्ष ग्वालियर मेला प्राधिकरण) इस सत्र के मुख्य अतिथि थे। इस सत्र में डॉ. लालबहादुर सिंह, डॉ. नीलम जैन, डॉ. कांति जैन एवं डॉ. कृष्णा जैन ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये। गोपाचल के इतिहास, उसकी वर्तमान दशा पर विचार करते हुए उसके जीर्णोद्धार के सम्बन्ध में अपने-अपने सुझाव प्रकट किये एवं नारी शक्ति का आव्हान किया कि वह भी इस सिद्धक्षेत्र के संरक्षण में कदम से कदम मिलाकर आगे आये। p3D महाराज SIC D 2002 श्रीगोपाचन सानिध्य-काम संगोष्ठी का तृतीय सत्र जी.वाय. एम.सी. परिसर में आरंभ हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री पारस जी गंगवाल ने की एवं पं. नीरज जी जैन इस सत्र के मुख्य अतिथि थे। इस सत्र के प्रथम वक्ता श्री रामजीत जी जैन एडवोकेट ने कई अनछुए पहलुओं की ओर सभा का ध्यान आकृष्ट किया। आपका मानना है कि गोपाचल पर एक पत्थर की बावड़ी से भी अधिक सुन्दर मूर्तियाँ हैं जो किसी ने नहीं देखी, उनके लिए अभी रास्ता दुर्गम है, वहाँ यदि आवागमन के साधन सुलभ हो जायें तो वह भी अनुपम समूह बन सकता डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर) जो इसके पूर्व भी गोपाचल पर कई बार सर्वेक्षण के समय उपस्थित थे, उन्होंने उस समय से आज तक हुए प्रगति कार्य को प्रस्तुत करते हुए अनेक सुझाव गोपाचल जीर्णोद्धार के लिए प्रस्तुत किए एवं डॉ. कृष्णदत्त बाजपेई द्वारा लिखित एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में सुरक्षित अंग्रेजी भाषा की कृति GOPACHAL की पाण्डुलिपि 116 अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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