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संक्षिप्त आख्या अर्हत् वचन । गोपाचल विरासत दशा एवं दिशा राष्ट्रीय संगोष्ठी कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
ग्वालियर - 7 से 8 सितम्बर, 2002
डॉ. अभयप्रकाश जैन*
परम पूज्य 108 मुनि श्री पुलकसागरजी महाराज एवं 105 क्षुल्लक श्री प्रयोगसागरजी महाराज के मंगल सान्निध्य में श्री दिग. जैन वर्षायोग समिति ग्रेटर ग्वालियर ने डॉ. अभयप्रकाश जैन ग्वालियर के संयोजकत्व में 7 और 8 सितम्बर को द्विदिवसीय 'गोपाचल दशा एवं दिशा' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। चार सत्रों में सम्पन्न इस संगोष्ठी में 12 विद्वान सम्मिलित हुए और उन्होंने अपने वक्तव्य एवं शोध पत्र प्रस्तुत किये। संगोष्ठी में बाहर से आये हुए प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन (फिरोजाबाद), डॉ. अनुपम जैन (इन्दौर), पं. नीरज जैन (सतना), डॉ. हरिवल्लभ माहेश्वरी (चेन्नई), डॉ. नीलम जैन (गाजियाबाद) एवं स्थानीय विद्वानों में डॉ. कांति जैन, डॉ. कृष्णा जैन, डॉ. लालबहादुर सिंह, डॉ. अभयप्रकाश जैन, श्री रामजीत जैन एडवोकेट एवं डॉ. अशोककुमार जैन ने अपने विचार प्रकट किये।
संगोष्ठी का उद्घाटन मंगलाचरण एवं प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। वर्षायोग समिति के अध्यक्ष श्री प्रदीप जैन 'मामा', महामंत्री श्री नत्थीलाल जैन, श्री अजय जैन, रवीन्द्र जैन, महेश जैन आदि के सहयोग से समागत विद्वानों का बैज एवं सम्पुट (किट), माल्यार्पण से सम्मान किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन एवं मुख्य आतिथ्य को पं. नीरज जैन ने स्वीकार किया। अपने उद्घाटन वक्तव्य में बोलते हुए श्री सतीश जी अजमेरा ने गोपाचल तीर्थक्षेत्र के गौरव को स्पष्ट करते हुए कहा कि गोपाचल सुप्रतिष्ठ केवली की तपस्थली है, अत: सिद्धक्षेत्र है। विश्व की सबसे बड़ी पद्मासन भगवान पार्श्वनाथ की 42 फुट ऊंची प्रतिमा यहाँ स्थापित है तथा यह अतिशय का केन्द्र है। किन्तु पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारकों में होने के कारण आज गोपाचल का विकास नहीं हो पाया है। समाज की निष्क्रियता भी इसमें एक बड़ा कारण रही है। गोपाचल हमारी धरोहर है। हमें इस सांस्कृतिक मेरूदण्ड को बचाना है इसी उद्देश्य को लेकर यह संगोष्ठी आयोजित की गई है। मंच पर उपस्थित सभी विद्वानों का वाचिक स्वागत करते हुए आपने कहा
खुद ही सवाल हैं ये, खुद ही जबाव हैं ये
देख लो परख लो, गुदड़ी के लाल हैं ये। प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में मंदिर, मूर्ति, माला, मंत्र और महात्मा इन पांच प्रकारों में जन-जन की आस्था केन्द्रित हैं। भारत का कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जिसमें इनको माहात्म्य नहीं दिया गया है। मंदिर श्रेष्ठ नागरिक बनने की सर्वोत्तम कार्यशाला है तो मूर्ति में जीवन्त भगवान् की कल्पना है, महात्मा, मुनि हमारी आस्था एवं भक्ति के केन्द्र हैं, प्रभु तक पहुँचने का मार्ग बताने वाले हैं। जिन आचार्यों की प्रेरणा से तोमरकालीन राजाओं ने मूर्तियों का निर्माण कराया वे वन्दनीय हैं लेकिन वह तो अब संसार में नहीं है। इनको संरक्षित करना हमारा दायित्व है। मुनिश्री की प्रेरणा अत्यन्त सराहनीय है जिसके कारण ग्वालियर समाज गोपाचल तीर्थ के विकास एवं संरक्षण के लिए कृत संकल्पित हुआ है। मुनि श्री पुलक सागर जी ने अपने मंगल उदबोधन में कहा कि जब बाबर ने
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