Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 125
________________ धवलकीर्ति-अरहंतगिरी ने उत्साहवर्द्धन करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया है। मंगलोर वि.वि. के कुलपति प्रो. एस. गोपाल ने अपनी शुभकामनायें प्रेषित की हैं। केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री श्रीमती सुमित्रा महाजन, अ.भा.दि. जैन विद्वत् परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचन्द्र जैन - बिजनौर, प्रो. नलिन के. शास्त्री - बोधगया, पं. श्री गुलाबचन्द आदित्य - भोपाल तथा स्थानीय विद्वानों ने इस कार्य को संचालित करने के लिये ज्ञानपीठ की सराहना की है तथा अभूतपूर्व सफलता हासिल करने के लिये हमें शुभकामनायें प्रदान की हैं। उपलब्ध साधन व तैयारी सिरिभूवलय विविध विषयों व 700 वे अधिक भाषाओं में होने से इस परियोजना के संचालन के लिये सर्वप्रथम सम्पन्न पुस्तकालय का होना जरूरी था जो कि ज्ञानपीठ का लगभग 10000 ग्रन्थों से युक्त हमें सुलभ है। ज्ञानपीठ में संचालित प्रकाशित जैन साहित्य सूचीकरण परियोजना के माध्यम से अन्य ग्रन्थ भंडारों के लगभग 40 हजार ग्रन्थों की सूची भी हमें उपलब्ध है। परियोजना संचालन हेतु आधुनिक संगणन केन्द्र (Computer Centre) कुंदकुंद ज्ञानपीठ में स्थापित कर लिया गया है। इसमें निम्नांकित साफ्टवेयर सुविधाओं को उपलब्ध कर लिया गया है - 1. अंग्रेजी से ग्रीक भाषा के लिप्यानुवाद का Word Processor 425.exe. उपलब्ध। 2. अंग्रेजी से फ्रेंच भाषा के लिप्यानुवाद का Word Processor 314.exe. उपलब्ध। 3. बरहा साफ्टवेअर - इससे अंग्रजी वर्णों की फीडिंग से हिन्दी, अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी, संस्कृत में अनुवाद होता है। 4. आई लीप साफ्टवेअर में कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, अंग्रेजी आदि 14 भाषाओं के लिप्यांतरण की सुविधा है। 5. श्रीलिपि साफ्टवेअर 5.0 जेम पैकेज उपलब्ध। इसमें देवनागरी, गुजराती, पंजाबी, बंगाली, असमी, उड़िया, तमिल, कन्नड़, तेलगु, मलयालम, सिंहल, सिन्धी, अरैबिक, रसियन, संस्कृत, इंग्लिश, डाइक्रिटिकल और सिम्बोल के फोन्ट और लिपिकरण की सुविधा है। मुझे सिरिभूवलय के अंतिम (59 वें) अध्याय का बंध खालने में प्रथमत: सफलता हासिल हो गई थी, इसलिये इसी से कार्य प्रारंभ कर दिया था। 59 वें अध्याय में 40 अंकचक्रों से 592 कन्नड़ श्लोक बनेंगे। अब तक हमने 380 श्लोक डिकोड कर लिये हैं, इनका देवनागरी और कन्नड़ लिपि में लिपिकरण कर लिया है। सभी की सहयोग की सद् इच्छायें, उत्कंठायें होते हुए भी सिरिभूवलय परियोजना का अब तक का सम्पन्न कार्य एकव्यक्तीय - कार्योपलब्ध्याश्रित है। परियोजना का पूर्ण साफल्य संस्था के संकल्प, अनुकूल वातावरण, समुचित पारिश्रमिक व उत्साहवर्द्धन और प्राचीन कन्नड़ के ज्ञाता विद्वानों की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। * शोधाधिकारी - सिरिभूवलय परियोजना, C/o. कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, म.गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर -452001 प्राप्त : 30.07.02 अर्हत् वचन, 14 (2-3), 2002 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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