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3.
मुनि श्री के अवलोकन हेतु उपलब्ध कराई। आपने अत्यन्त विस्तार से 1990 से 2002 के घटनाक्रम, पूर्व में किये गये प्रयासों, उनके परिणामों की समीक्षा की। आपने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा 1990 से 1997 तक डॉ. टी. व्ही. जी. शास्त्री के नेतृत्व में चली गोपाचल सर्वेक्षण, अभिलेखीकरण एवं मूल्यांकन परियोजना की उपलब्धियों, प्रकाशित पुस्तकों आदि की जानकारी देने के साथ ही अग्रांकित कार्ययोजना प्रस्तुत की। 1. पर्वत पर बनी मूर्तियों तथा गुफाओं की सफाई कर यहाँ काई, फंगस आदि से मुक्त
कर इनका रासायनिक परिरक्षण कराना चाहिये। जिससे मूर्तियों एवं अन्य कलात्मक पत्थरों का क्षरण रोका जा सके। पानी का रिसाब रोकना भी जरूरी है। पूरी योजना का निर्माण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कराया जाना चाहिये। उनकी विशेषज्ञता का लाभ सभी दृष्टियों से हितकर है, संसाधन रूप में हम मदद कर सकते हैं। इस क्षेत्र में धार्मिक एवं ऐतिहासिक पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। एतदर्थ इसके चतुर्दिक उद्यान, मार्ग विद्युतीकरण कार्य आदि का विकास कर आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहिये। कार्य चल रहा है, यह देखकर कुछ संतोष है, किन्तु गंदगी को रोकना प्राथमिक रूप से आवश्यक है। पर्वत के जैन पुरातत्व से सम्बद्ध सभी भागों पर एक V.D.O. फिल्म का निर्माण कराया जाना चाहिये, विशेषत: शिलालेखीय अंशों को संरक्षित किया जाना चाहिये। पूर्व में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मन्दिर सर्वेक्षण योजना में शायद कुछ काम हुआ है। लगभग 16 पृष्ठ की एक लघु परिचयात्मक पुस्तिका का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी/अंग्रेजी में प्रकाशन किया जाना चाहिये। इसमें प्रकाशित सामग्री या चित्रों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। इसका मूल्य प्रतीकात्मक रु. 2.00/5.00 हो, भले ही लागत 10 - 15 रुपये आये। हम इसमें सहयोग हेतु प्रस्तुत हैं। डॉ. शास्त्री द्वारा लिखित एवं कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पुस्तक का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित होना चाहिये। डॉ. अभयप्रकाश जैन द्वारा इसका अनुवाद कराया जाये, ज्ञानपीठ इसके सम्पादन एवं प्रकाशन करने हेतु प्रस्तुत है। संसाधन ट्रस्ट को उपलब्ध कराना जरूरी है। गोपाचल पर भावी अध्ययन में उपयोगी समस्त उपलब्ध सामग्री (प्रकाशित/अप्रकाशित) का संकलन यहाँ उपलब्ध कराया जाना चाहिये। श्री रामजीत जैन एडवोकेट की पुस्तक गौरवता का गौरव - गोपाचल का पुनर्प्रकाशन, डॉ. रागिनी त्रिपाठी के जीवाजी वि.वि. में
1982 में प्रस्तुत प्रबन्ध का प्रकाशन भी अपेक्षित है। 7. कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा गोपाचल के विविध भागों के लगभग 500-600 चित्र खींचे
गये थे। इसमें अनेक तो ऐसे हैं जिनका छायांकन अत्यन्त दुष्कर था। इन चित्रों की एक प्रदर्शनी यहाँ आयोजित की जानी चाहिये। चित्रों का आकार बड़ा होना चाहिये जिससे वह ध्यान आकृष्ट करे। आवश्यकतानुसार नये चित्र भी खिंचवाये जा सकते
विख्यात पुराविद प्रो. के. डी. बाजपेयी से भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ने गोपाचल पर एक पुस्तक लिखाई थी। इसकी प्रति प्रो. बाजपेयी ने अपने सारंगपर प्रवास में 1992 में लेखक को दिखाई थी। इसकी एक प्रति साहू श्री अशोकजी ने ज्ञानपीठ के यशस्वी अध्यक्ष श्री देवकुमारसिंहजी कासलीवाल को ग्वालियर में एक बैठक में प्रदान की थी।
अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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