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3. सम्पूर्ण ग्रंथों की सूची का एक रजिस्टर भी बनायें।
4. पाण्डुलिपियों / ग्रंथों को रखने के लिये लोहे की अलमारियों का उपयोग करें। लकड़ी की अलमारियों से ये अधिक सुरक्षित हैं।
5. वेष्टन सती हों. रंग लाल या पीला हो। लाल रंग पर सूर्य - ताप का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता तथा पीला रंग कीटाणु निरोधक होता है।
6. वेष्टन को कस कर बांधना चाहिए ताकि उठाने - रखने में ग्रंथ को क्षति नहीं पहुंचे।
7. आज के मुद्रण प्रधान युग में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। वे उपेक्षित होकर चूहों और दीमकों की भोज्य बन रही हैं। हमें उनका लेमीनेशन करा कर, माइक्रो फिल्म बनवा कर, बिन्दु क्रमांक एक-दो के अनुसार उनकी सुरक्षा करना चाहिये।
8. यदि पाण्डुलिपियों / प्राचीन ग्रन्थों की उक्तानुसार आपके यहां सुरक्षा व्यवस्था संभव न हो तो कृपया उन्हें किसी पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र को सादर समर्पित कर दें ताकि वे सुरक्षित रह सकें।
9. आज के इस मुद्रण प्रधान युग में प्राचीन, हस्तलिखित पाण्डुलिपियों ग्रन्थों को कोई पढ़ना नहीं चाहता, उनके पढ़ने की योग्यता भी सामान्य जनों में नहीं है, यहां तक कि नवीन पीढ़ी के विद्वान भी उनके पढ़ने में अरूचि एवं असमर्थता प्रकट करते हैं। ऐसी स्थिति में पाण्डुलिपि प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन हितकर होगा। इस "ज्ञान यज्ञ" के लिय साधु, विद्वान, श्रुतसेवी संस्थायें एवं जिनवाणी भक्त श्रेष्ठी वर्ग आगे आयें और इस ज्ञान की संचित निधि को विलुप्त होने से बचायें।
10. इन शिविरों के माध्यम से ग्रंथागारों की पाण्डुलिपियों का सूचीकरण, प्रशिक्षण, ग्रन्थों का सम्पादन तथा प्रकाशन जैसे कार्य भी सरलता से हो सकेगें।
11. प्रत्येक जिनालय में बड़ी संख्या में मुद्रित / हस्तलिखित / प्राचीन / नवीन ग्रन्थ पाये जाते हैं किन्तु सुरक्षा, रख- रखाव का न तो हमें ज्ञान है और न ध्यान। फलत: ग्रंथ शीघ्र फट जाते हैं, कीड़े लग जाते हैं, चूहे काट जाते हैं, उन्हें दीमक चट कर जाती है या वे सड़ - गल जाते हैं। अत: उनकी सुरक्षा के लिये अल्पकालीन / दैनिक उपाय निम्नानुसार है - 1. पुस्तकों / ग्रंथों को सदा स्वच्छ / शुद्ध हाथों से ही उठाये एवं रखें। 2. पुस्तकों / ग्रंथों को धूलि एवं गंदगी से बचायें। उनकी साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक जैसे भी संभव और आवश्यक हो, सफाई की व्यवस्था करें। हमारे पूर्वजों ने श्रुतपंचमी पर्व जिनवाणी की सुरक्षा आदि के लिये ही नियत किया है। सुरक्षा भी जिनवाणी की पूजा का एक अंग है।
3. पुस्तकों / ग्रन्थों के साथ जीवित मानव (जिनवाणी माता) जैसा व्यवहार करें। अत: अलमारियां परी बंद न करें, कछ हवा आने दें या कभी - कभी खोल कर रखें।
4. पुस्तकों के रखने का स्थान न तो अधिक गर्म हो, न अधिक ठंडा न, न सीलन भरा हो, प्रासुक / निर्जंतुक हो। अत: पुस्तकों को भीतरी कक्ष में रखना चाहिये।
5. पुस्तकों पर सूर्य की तीव्र किरणें सीधी नहीं पड़ना चाहिये इससे कागज की आयु कम हो जाती है। मंद ताप/प्रकाश के लिये खिड़की/रोशनदान के काँचों पर रंग करा देना चाहिये। 6. पुस्तकें को पत्थर या दीवाल से सटा कर न रखें, सीलन आ सकती है। 7. पुस्तकें रखने के स्थान पर अगल-बगल - सामने कागज लगा कर फिर पुस्तकें रखें।
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अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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