Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 51
________________ 3773 185 31539 38 - लव = 1 नाली (घड़ी) = 24 मिनट व्यवहार काल के प्रमाण जैनाचार्यों द्वारा (जिनेन्द्र सिद्धान्त कोष, भाग -2, पृ. 216-217) दिये गये हैं। तिलोयपण्णत्ति, अनुयोगद्वार सूत्र, जम्बुद्धीवपण्णत्ति भी दृष्टव्य हैं। प्रथम प्रकार का काल प्रमाण निर्देश असंख्यात समय : 1 आवली 2880.. 84 नियुत = 1 कुमुदांग 3-4 संख्यात आवली = 1 उच्छवास - सेकंड 84 लाख कुमुदांग : 1 कुमुद 7 उच्छवास = 1 स्तोक = 5 सेकंड 84 कुमुद = 1 पद्मांग 84 पद्मांग = 1 नलिनांग 7 स्तोक = 1 लव : 37 -सेकंड 84 लाख नलिनांग = 1 नलिन 777 84 नलिन = 1 कमलांग 84 लाख कमलांग = 1 कमल 2नाली(घड़ी) = 48 मिनट-1मूहुर्त 84 कमल = 1 त्रुटितांग 30 मुहूर्त = 24 घंटे = 1 अहो रात्रि + 1 अहो दिवस) 84 लाख त्रुटितांग = 1 त्रुटित 15 अहोरात्रि + 15 अहोदिवस = 1 पक्ष 84 लाख त्रुटित = 1 अट्टांग 2 पक्ष = 1 मास 84 लाख अट्टांग = 1 अट्ट 84 अट्ट = 1 अममांग 2 मास: 1 ऋतु 84 लाख अममांग : 1 अमम 3ऋतु = 1 अयन 2 अयन = 1 संवत्सर = 1 वर्ष 84 अमम : 1 हाहांग 5 वर्ष = 1 युग 84 लाख हाहांग : 1 हाहा 10 वर्ष = 1 वर्ष दशक 84 हाहा: 1 हह अंग 100 वर्ष = 10 वर्ष दशक : 1 वर्ष शतक 84 हू हू अंग = 1 हू हू 1000 वर्ष = 1 वर्ष सहस्र 84 हूहू : 1 लतांग 84 लाख लतांग = 1 लता 10000 वर्ष = 1 वर्ष दश सहस्र 84 लता : 1 महालतांग 1000०० वर्ष = 1 वर्ष लक्ष 84 लाख महालतांग = 1 महालता 84 लाख वर्ष = 1 पूर्वांग 84 महालता = 1 श्रीकल्प 84 लाख पूर्वांग: 1 पूर्व 84 लाख श्रीकल्प = 1 हस्त प्रहेलित 84 पूर्व = 1 पर्व 84 लाख हस्त प्रहेलित = 1 अचलात्म 84 पर्व = 1 नियुतांग 84 लाख नियुतांग = 1 नियुत दूसरे प्रकार का काल प्रमाण निर्देश असंख्यात समय = 1 निमेष 15 निमेष = 1 काष्ठा : 2 सेकंड 30 काष्ठा : 1 कला 2- कला = 24 मिनट 15 कला (महाभारत) = 1 झटिका = 1 घड़ी 2 घड़ी = 1 मुहूर्त मुहूर्त के आगे के प्रमाण पूर्ववत् हैं। यह आगे बढ़ाते हए व्यवहार पल्य से असर्पिणी काल तक पहुँचते हैं। इस प्रकार जैनाचार्यों ने अनादि अनंत काल की रेखा पर काल खंडों को प्रमाणित करके संख्यात और असंख्यात कालगणना में पहुँचते हैं। यह उनकी मात्र कल्पना नहीं है। विज्ञान Transverse अर्हत् वचन, 14(2 - 3). 2002 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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