Book Title: Arhat Vachan 2002 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 54
________________ श्रीपति (1039 ई.) कृत गणित तिलक को जैनाचार्य सिंहतिलक सूरि (13 वीं श.ई.) कृत टीका सहित सम्पादित कर हीरालाल रसिकलाल कापड़िया ने 1937 में गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज, बड़ौदा से प्रकाशित कराया था। अंकगणित को समर्पित यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 6 पं. बलदेव मिश्र ने 1946 एवं 1951 में 2 महत्वपूर्ण आलेख क्रमशः श्रीधराचार्य एवं जैन ज्यामिति पर लिखे। डॉ. राजेश्वरी दत्त मिश्र के 1949, 1951 एवं 1953 के लेख पठनीय हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने भी 1945, 1948, 1955, 1967, 1968 में महत्वपूर्ण लेख लिखे। 1974 में प्रकाशित 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (4 भाग )' जैनाचार्यों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने का वर्तमान में उपलब्ध श्रेष्ठ ग्रन्थ है। 1942 एवं 1949 में प्रो. अवधेशनारायण सिंह ने प्रसिद्ध दिगम्बर जैन टीका 'धवला' के गणित पर अत्यन्त महत्वपूर्ण आलेख लिखे। 1948 में प्रो. सबलसिंह ने आगरा वि.वि. में आचार्य श्रीधर एवं उनके कृतित्व पर महत्वपूर्ण शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। 1950 में प्रकाशित उनका आलेख भी पठनीय है। 1958 में प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन ने आचार्य यतिवृषभ प्रणीत करणानुयोग के महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'तिलोयपण्णत्ति' के गणित पर 108 पृष्ठीय अत्यन्त सारगर्भित आलेख प्रस्तुत किया। 1960 में डॉ. उषा अस्थाना द्वारा लखनऊ वि.वि. में ācārya Sridhara and His Trisatika शीर्षक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया गया। 1963 में महावीराचार्य कृत गणित सार संग्रह का हिन्दी अनुवाद प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन ने तैयार कर सोलापुर से प्रकाशित कराया । ' इन प्रारम्भिक प्रयासों से विश्व गणित इतिहास में जैन गणित अधिकृत रूप से प्रतिष्ठापित हुआ। इसके बाद प्रो. कृपाशंकर शुक्ल, प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन, प्रो. आर. सी. गुप्त, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ( आरा). डॉ. मुकुट बिहारी लाल अग्रवाल (आगरा), प्रो. टी. ए. सरस्वती, प्रो. बी. एस. जैन (दिल्ली), प्रो. एम. आर. गेलरा (जयपुर), प्रो. एस. सी. अग्रवाल (मेरठ), डॉ. एन. के. चौधरी (नागपुर), डॉ. एस. आर. शर्मा (अलीगढ़), डॉ. परमेश्वर झा (सुपौल), डॉ. अनुपम जैन, श्री दिपक जाधव ( बड़वानी) आदि विद्वानों ने जैन गणित के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान कार्यों को गति देते हुए शोधपूर्ण आलेखों की लम्बी श्रृंखला प्रस्तुत की जिनका विस्तृत सर्वेक्षण आगामी पृष्ठों पर निहित है। इन आलेखों में जैन गणित विषयक यथेष्ट सामग्री उपलब्ध है। जैन गणित के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि प्रो. पद्मावथम्मा द्वारा सन् 2000 में प्रस्तुत किया गया महावीराचार्य कृत गणित सार संग्रह का कन्नड़ अनुवाद है। • वर्तमान में निम्नांकित केन्द्रों पर जैन गणित के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य हो रहा है। 2. 1. ब्राह्मी सुन्दरी प्रस्थाश्रम (प्रो. एल. सी. जैन) कंचन विहार, जबलपुर (म.प्र.) उच्च शिक्षा संस्थान (प्रो. एस. सी. अग्रवाल) चौधरी चरणसिंह वि.वि., मेरठ 250004 3. 52 Jain Education International गणित भारती एकेडमी (प्रो. आर. सी. गुप्त ) आर- 20, रसबहार कालोनी, झाँसी (उ.प्र.) 4. गणित विभाग (प्रो. पद्मावथम्मा) मैसूर वि.वि., मैसूर (कर्नाटक) For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 14 (23), 2002 www.jainelibrary.org

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