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में जीव विक्रय, भाण्ड प्रतिभाण्ड, आदि अनेक प्रकरणों में सरल समीकरण, सरल युगपत समीकरण, अनिर्धाय रेखीय समीकरण को हल करने में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।
वर्ग समीकरण
श्रीधर ने सरल समीकरण के अलावा वर्ग समीकरणों का भी विवेचन किया है। श्रीधर के बीजगणित विषयक पांडित्य का भास्कर ने भी लोहा माना है। वे लिखते हैं
-
अर्थात् ब्रह्मगुप्त,
श्रीधर एवं पद्मनाभ के बीजगणित विषयक कार्य अत्यंत विस्तृत हैं, मैंने उनसे केवल उनका सार ही ग्रहण किया है। यह कथन श्रीधर की बीजगणित विषयक कृति की उपस्थिति एवं महत्व को दर्शाता है। पाटीगणित विषयक अपनी कृतियों में उन्होंने अपने एतद्विषयक ज्ञान का एक अंश ही प्रस्तुत किया है। यहाँ हम उनके वर्ग समीकरण विषयक लाघव को प्रस्तुत कर रहे हैं।
भास्कर (1150 ई.) ने अपने बीजगणित में श्रीधर का निम्न नियम उद्धृत किया
है
ब्रह्माहृयश्रीधरपद्मनाभबीजानि यस्माद्द्तिविस्तृतानि ।
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आदाय तत्सारमकारि नूनं सद्युक्तियुक्तं लघुशिष्यतुष्टयै ॥ '
चतुराहतवर्ग समै रूपैः पक्षद्वयं गुणयेत । अव्यक्त वर्ग रूपैर्युक्तौ पक्षो ततो मूलम् ॥'
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c] के पक्षों को अज्ञात राशि के वर्ग के गुणक दोनों पक्षों में अज्ञात राशि के गुणक (b) के वर्ग (b2) को जोड़ो । तदुपरान्त वर्गमूल ज्ञात करो। अर्थात् ax 2 + bx = c का हल निम्नवत् होगा
वर्ग समीकरण [ax2 + bx = (a) के चार गुने (4a) से गुणा करो।
4a[ax2 + bx] + b± = 4a.c + b2
4a 2 + 4abx + b 2
= 4ac + b2
(2ax + b) 2
= b2 + 4ac
2ax + b
= /b2 + 4ac
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2ax = b + /b2 + 4ac
-b + √b2 + 4ac
2a
यह रीति वर्ग समीकरण को हल करने की वर्तमान में प्रचलित रीति है। जिसे त्रुटिपूर्ण ढंग से उमरखय्याम की विधि कहते हैं।
अर्हत् वचन, 14 (23), 2002
x=
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श्रीधर के पाटीगणित में एक ऐसा नियम पाया जाता है जो अनिधार्य वर्ग समीकरण से सम्बद्ध है एवं किसी अन्य भारतीय गणितज्ञ की कृतियों में नहीं मिलता है।
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