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गुणके वर्गयोर्मध्ये तत्पदाधो भुजश्रुती। केचित्प्राक्कथिते तत्र वज्र केणाहती तयोः ॥ अन्तरस्य कृति: क्षेपस्तकोटिः प्रथमं पदम् । ऋजुत्यन्तरं ज्येष्ठं रूपक्षेपेऽन्तरोद्धृते ॥ यह Nx + 1 का सापेक्ष हल प्रदान करता है।
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K
Ah-Bb Bh-Ab
Bh-Ab
यहाँ b, k, h किसी समकोण त्रिभुज के आधार, कर्ण एवं लम्ब हैं तथा A एवं B दो संख्याएँ हैं जहाँ AB
श्रीधर द्वारा श्रेणी व्यवहार, क्षेत्र गणित एवं ठोस ज्यामिति पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया गया है किन्तु श्रीधर ने महावीर के समान क्षेत्रगणित पर कोई स्वतंत्र कृति नहीं लिखी। इनका विवेचन भाग 3 में किया जायेगा ।
X =
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि पाटीगणित के विविध विषयों पर श्रीधर ने अत्यन्त मौलिक एवं प्रतिभापूर्ण कार्य किया है। इनकी मौलिकता, विशिष्टता एवं पूर्ववर्ती तथा परिवर्ती गणितज्ञों से तुलनात्मक अध्ययन हेतु भाग 3 (लेख का) देखें।
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सन्दर्भ -
1. कपाट का अर्थ है 'दरवाजे का पल्ला' और सन्धि का अर्थ है 'जोड़ अतः कपाट सन्धि का अर्थ है 'दरवाजे के पल्लों का जोड़' ।
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2. कृपाशंकर शुक्ला, हिन्दू गणित शास्त्र का इतिहास भाग 1 (प्रो. बी.बी. दत्त की मूल अंग्रेजी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद), उ.प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, लखनऊ, पृ. 129 एवं त्रिशतिका ( द्विवेदी संस्करण), पृ. 3 आदि।
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3. यही कारण है कि गुणन के अर्थ में हनन और इसी प्रकार के अन्य पर्यायवाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता था।
4. इसीलिये गुणनफल को प्रत्युत्पन्न कहते थे।
5. हिन्दू गणित शास्त्र का इतिहास, पृ. 138 त्रिशतिका, पृ. 3.
6. वही, पृ. 143
त्रिशतिका, पृ. 4.
7. वही, पृ. 47 8. वही, पृ.
163
9. वही, पृ. 155
y =
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त्रिशतिका, पृ. 5.
त्रिशतिका, पृ. 5.
त्रिशतिका, पृ. 6.
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10. वही, पृ. 159.
11. यहाँ घनमूल को 'अन्त्य' और लब्धि को 'आदि' कहा गया है। हिन्दू गणित शास्त्र का इतिहास, पृ. 188; त्रिशतिका,
12.
पृ. 8.
13. त्रिशतिका, पृ. 12.
14. पाटीगणित की प्रस्तावना, पू. XIV.
15. वही, पृ. XIII.
16. वही, पृ. 159, पंक्ति 9-12.
प्राप्त: संशोधनोपरांत प्राप्त - जनवरी 2001
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अर्हत वचन 14 (23) 2002
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