Book Title: Arhadgita
Author(s): Meghvijay, Sohanlal Patni
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 15
________________ 1 , हो जाता है अत: इसे अंगुष्ठ से नमस्कार करो । यति योगी अथवा ब्राह्मण जो कोई भी हो आसक्ति को छोडकर आत्मबोधक हो जाता है अतः तर्जनी से नमस्कार करो। इस प्रकार रक्षा पञ्चर रूप में गीता के पटन पाटन का विचार किया गया है ८ अज्ञान मोह से रक्षा करने के लिये यह कवच रुप है । ' मुख्य रूप से कर्म बंधन का नाश ' इसका फल है अतः फट् ' विधानात्मक विसर्जनीय शब्द से उसकी पुष्टि की गई है । इसका 'विनियोग' है श्री जिनेश्वर देव के जप में प्रीति । उपाध्यायजी ने अर्हद्गीता का ग्रंथावतरण परसमयमार्गपद्धति से श्रुत देवता के अवतरण से किया है । गीता के स्वरूपादि निदर्शन के अन्त में उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है C " इति परसमयमार्ग पद्धत्या शास्त्र प्रज्ञा श्रुतदेवतावतारः अद्गीता के स्वरूप की चर्चा उन्होंने इस प्रकार की है- ८८ 'श्री वीरेण विबोधिता भगवता श्री गौतमाय स्वयं । सूत्रेण ग्रथितेन्द्रभूति मुनिना साद्वादशांग्यांपराम् । अद्वैतामृतवर्षिणीं भगवतीं पत्रिपदध्यायिनीं । मातस्त्वां मनसा दधामि भगवद्गीते भवद्वेषिणीम् ॥ अर्थ-यह गीता स्वयं महावीर भगवान् द्वारा गौतम को कही गई है । द्वादशांगों पर आधारित इस भगववाणी को इन्द्रभूति गौतम ने सूत्र रूप में रचा । इसमें २४ तीर्थङ्करों में अभेद दर्शित किया गया है अर्थात् ऋषभदेव से लेकर महावीर तक हुए समस्त तीर्थकरों में एकत्वं स्थापित किया गया है । इसमें ३६ अध्याय हैं एवं यह भवरोग का नाश करने वाली है । ३६ की संख्या के ३ व ६ में परस्पर विरोध है अर्थात् ३ से त्रिगुणात्मक संसार और ६ से छः जीवनिकाय इनके परस्पर विरोध से मोक्ष संभव है अर्थात् त्रिगुणात्मक संसार से विमुख होना गीता का लक्ष्य है । ३६ का योग होता है ९ अर्थात् इसमें नौ तत्त्वों का विवेचन है । कुल श्लोक ७७२ हैं जिनका योग होता है ७+७+२=१६=१+६=७ अर्थात् शैली सप्तभंगी नय की है । सोलह की संख्या नाभिकमल की १६ पखुरियां हैं । इसकी समस्त संख्याओं का सार्थक प्रयोग मुझे दिखाई देता है । प्रथम से तेरहवें अध्याय तक तो मन को वश में करने के उपाय, आत्म ज्योति प्रकट करने का उपाय, उसके फल, ज्ञान धर्म का उदय, धनुर्वेद, ज्योतिषशास्त्र, आयुर्वेद, शकुन तथा मंत्र तन्त्र शास्त्रों के अनुसार धर्म की प्रधानता, ज्ञान का स्वरूप आदि समझाया गया है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दिन, रात, पहर, नक्षत्र, तिथि, वार एवं घड़ियों का धर्म केन्द्रित इतना सुन्दर विवेचन अन्यत्र देखने को नहीं मिलता । पहले अध्याय में गौतम स्वामी मन को वश में करना चाहते हैं । भगवान ने Jain Education International १४ "" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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