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इच्छाएँ असीम |७
क्योंकि वह धनवान की तरह असन्तोष एवं अशान्ति की आग में नहीं जलता है। वह दूसरों को ठगने की उधेड़-बुन एवं भोले लोगों को किस तरह जाल में फंसाकर या चकमा देकर उनकी जेबें कैसे खाली कराई जाएँ इसके लिए नये नये आविष्कार एवं प्लान बनाने की चिन्ताओं से मुक्त रहता है । इसलिए वह सब तरह से शान्तिमय जीवन जीता है।
___ अनावश्यक धन-सम्पत्ति एवं पदार्थों का संग्रह करना ही परिग्रह नहीं है, बल्कि अनावश्यक विचारों का संग्रह करना भी परिग्रह है। गांधी जी ने भी कहा है -"जो मनुष्य अपने दिमाग में निरर्थक ज्ञान ठूस रखता है, वह भी परिग्रही है।" जैसे अनावश्यक पदाथं मनुष्य के मन की शान्ति को भंग करते हैं, वैसे निरुपयोगी एवं निम्नस्तर के विचार भी उसकी शान्ति का अपहरण करते हैं। उसके जीवन में विकारों को जन्म देते हैं। अतः साधक को अपने दिमाग को सदा स्वस्थ रखना चाहिए । उसे व्यर्थ के कलह-कदाग्रहों एवं वासनामय विचारों के कड़े-करकट से नहीं भरना चाहिए। क्योंकि आवश्यक पदार्थ एवं स्वस्थ, सभ्य और ऊँचे विचार ही मनुष्य की सम्पत्ति है । अतः इच्छाओं का परित्याग करके आवश्यकताओं को सीमित करना ही वास्तव में सच्ची सम्पत्ति है । क्योंकि इससे सन्तोष भाव का विकास होता है और यही सच्चा सुख है ।
Wealth consists in having great possessions, but in having few wants.
-Epictatus
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