Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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खेत्ते पुक्खलावईविजए पुंडरिकिणीए नयरीए विमलनरिंद पुत्ते जिणपालिए तेरसमे वरिसे सिरिसीमंधरवंदणविणयए (येण ?) उप्पन्नजाईसरणे निक्खमिऊण उप्पन्नकेवलनाणे विहरिस्सइ । सीया विधाईसंडविदेहे अयलपुराहिवस्स दमघोसस्स पुत्तो कणयकेऊ चक्कवट्टितुल्लो तेरासीपुव्वलक्खरज्जं काऊण निव्वाणं गम्मि (मि) स्सई |
अउ परं देवाणुप्पिया ! अट्ठसए सिलापव्वे इच्चाइ उद्धारेहिं पवट्टमाणेहिं दूसमाणुभावेणं अदिट्ठ सुरगणप्पहाणं सोलसय ( ? ) बाणऊए वाहडउद्धारो । अणायरियपासा दो सहस्से दसब्भहिए दत्तो पत्तो गुणो वि दिखयरप्पहावं वज्जिय आसायणदोसं तउ दमघोसे विमले चउसहस्से । दससहस्से भाणू । सोलसहस्से विण्हो(हू)। वीससहस्से इंदपूयणिज्जा पडिमा । तउ परं सत्तमहथु (त्थु ) से (स्से) हो पव्व । एवं वायालीसे वियक्कंते उसप्पिणिए वट्टमा हि (?) सिरिपुंडरीयतित्थं अने (न)न्न सरिसं विक्खायं हुज्जा । तत्थ खीरधारा - अमयधारा - पुष्कलधाराउ मेघाउ वासं करिस्संति । जाव सयदुवारे पउमुत्तरपुत्ते सिरिपउमनाहे अरिहा तीसपरियाउ निख (क्ख) मिऊण साहिए दुवालससंवत्सरे वियक्कंते तिक्कोसुच्चे दुवा [ल ] सजोयण वित्थडे विमलगिरिम्मि अणेगवणस्सईहिं परिसोहेमाणे रायणवणम्मि उप्पन्नकेवलनाणे । तत्थ पडिमा आइनाहस्स । एवं इत्थ बावीसं तित्थगराणं केवलनाणं । सयकित्त स्स (?) इत्थ पुंडरिए निव्वुए वहुकोडिपरिवडो । एवं अनंतकालं (ल) चक्कसेविउ ॥
पुंडरीयअज्झयण - वीय उद्देसो ॥
गोयमसामिणा वुत्तं - कहं एवं ? जउ य गोयमा ! वेयावच्चगरकारस्स निरुवसग्गया । इत्थ पमायदोसेणं जावडिगेणं मिच्छदिठ्ठिरि (रिं) खणट्ठयाए सव्वघोरुवसग्गनिर्द्धाडणाए सम्मदिट्ठीणं पमायरख (क्ख) णट्ठाए सिरिसमणसंघस्स निरुवसग्गया(ए), 'इत्थ पमायदोसेणं' (?) जावडिस्स चरमसरीरया जाया ।
विमलगिरिम्मि तित्थे जिन्नुद्धारेण होई तित्थकरो ।
जइ पुण करेइ कालं त[इ] यभवेणं हवइ मुक्खो ॥
एयं सुच्चा गोयमाइगणहारिणो भगवओ (वं उ ) सहसामिपडिमं पंचहिं दंडगेहिं चउहिं चउहिँ थुईहिं वंदत्तंए ( वंदितुं गए ? ) । तत्थ इमा चत्तारि थुईओ "दु(यु)गादिपुरुषेन्द्राय" इत्यादिका श्लोकप्रमाणा । एवं विचित्तत्थवेहिं संसु (थु) णइ गोमो । एयम्मि अवसरे सोहम्माहिवई तित्थमउडं विमलगिरिमहातित्थं पूयंति
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