Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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विज्जादेवीव(उ)चिटुंति, तत्थ जंबुदीवपमाणा(ण)धवलहरा देवीसयसहस्सपरिवडा अणेगवाणमंतरसहस्ससामिणी अभिणंदिज्जमाणा कित्तणिज्ज(कित्तिज्ज)माणा उवउ(व)ना।
तम्मि समए संभरीयपुव्वभवा नियसामिज्झयणं पसुमकेच्चं(?) झाऊण न्हाया कयमंगला अणेगवणसंड-भद्दसाल-णंदणवण-पउमसंडवणाउ पउमाई, दहाउ अनाउ पउमाई गिण्हिऊण चंदणकट्ठसहस्सा गोसीसचंदणाणि गिण्हिऊण सिरिसुव्वयस्स अट्ठाहियामहिमं कुणइ । सयं नर्से गीयं धूवखेयं पुव्वा सुभवेणं(?) अणुरागरत्ता तत्थ ट्ठिया पइदिवसं करेइ । अन्नाउ वि वाणमंतरीउ सत्तरस दुग्गाउ। अन्नाउ वि वाणमंतरजाया सोलसपडिचारगा खित्तपाला जाया । नव कन्नाउ दुग्गाउ(?) सेसपडियारणीउ इई
जाया।
तउ णं महापीढं जायं । जंबुद्दीवस्स वणसंडाउ सव्वं गिण्हिऊण अच्छई । इत्थंतरे सव्वविदेहतित्थेसु अड्डाइज्जेसु नंदीसु(स )रेसु वि चेईयवंदण(ण) करेइ । सा वि भगवउ वीरस्स पायवडिया वंदणं काऊण सूरियाभुव्व नर्से करेइ । सक्क पुच्छाए पडिकिहियं-"सउणी एसा । तईय[भवे ?] भारहे खेत्ति(त्ते) सिद्धिस्सई ।"
तप्पभावाउ अखंडियं पुरं निम्मल कणयरयणाहरणविभूसियं डज्झिता(झंता)गरु-तुरक्खवमघमघायमाणअंबरयं निष्पा(प्फा)लियअरिठ्ठदोसं नयभं(रं) हुआ(अं)। इत्थतरे गोयमसामिणा पडिवोहिआ । धूलिकुट्टो तप्पभावाउ अभगो(ग्गो) । सव्वपुष्पारुहणं करेंती अन्नट्ठाणाउ णिवारेइ । अज्जसुहत्थिसीसेहिं त्थंभिया कलह(हं?)सेहिं पंचपुव्वा(?)रिएहिं । संपइ राया य तित्थवंदणं कुणंतो य भस (रु) यच्छि जिन्नुद्धार करेइ।
तत्थ य दुट्ठभ(अ ?)मरअहिडिंबिया(?) पणवा(वी)स जोयणाण मज्झे उवसग्गं करिति । सिरिगुणसुंदरसीसेहिं अज्जकालियारिएहिं जुगप्पहाणेहिं भरुयच्छे वासावासं ठिया ति(ते)हिं निवारिया । पडिवोहिया सरस्सईए सह इक्कारसिं(सं)गाई दस पुव्वाइं सीसा सुत्तत्थं गाहिया । '
इत्थंतरे वुट्ट ड्ड)वाया इ )सीसेहिं सिद्धि द्ध )सेणदिवायरेहिं उज्जेणीए पडिबोहट्ठा विक्कमनरिंदेण आसाववोहणे विमलगिरिम्मि उज्जिलसु(लेसु) प(य)ज्जुत्त(जिन्नु) द्धारो कउ । सुं(सु)दसणापडिमा गोसीसचंदणमयी अज्जकालियारा( रि)एहि कारिया । सा य आयासतलं उप्पयइ, सिद्धि (द्ध )सेणेण
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