Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 80
________________ [75] ए बोल इकतालीसमो । ४१ अनइ इरियावही पडिकम्या पाखइ आहारपाणी कराइ तो नउकार पांच गुणवा-ए बोल बितालीसमो । ४२ ठाबडइ भागइ छठतप करी पुहचाडवो - आंबिल तथा नीवी तथा सझाय सहस्र च्यार गुणी पुहचाडवो-ए बोल त्रइतालीसमो । ४३ मात्रउं अणपूंज्यइ परठवाइ तु, अनइं ऊभां परठवाइ तउ नोकार पांच गुणवा । कारण विना । - ए बोल चउतालीसमउ । ४४ ____ माहरइ काजई माहरइ मुंढइ खाएं-खाटउं कहवा पचखाण, वरांसतां कहवाइ तउ नउकारवालिनउ दंड १; अनइ जती प्रतइं अथवा ग्रहस्त प्रतई माहरा मूंढइ मुंहई थकी कठोरभाषा बोलाइ तउ नोकरवाली दस गुणवी - ए बोल पचतालीसमउ । ४५ इणी प्रकारइं पचतालीस बोल लख्या छई । श्री सीमंधरस्वामी साखि । प्रतिदिन विजयमान भट्टारिक परमगुरु तपागच्छतिलकसमान, विस्वाधार, कलिकालगौतमावतार, कल्पद्रुम, गच्छाधिराज श्री श्री..... हीरविजयसूरि - तत्पट्टप्रभाकर, धर्मभारधोरिंधर, सौभाग्यवंत आचार्यपदचक्रसमान, संयमश्रीहृदयार, कूर्चालसरस्वती, प्रतक्षभारती, चतुर्बुद्धिनिधान, वादीगजपंचानन, कुमतिमानमर्दन आचार्य श्री श्री... विजयसेनूरि- तद्गच्छे वाचक चक्रचूडामणिसमान महोपाध्याय श्री श्री... बिमलहर्षगणितत्शिष्य मुनि प्रेमविजयनी टीपणी जाणिवी । संवत् १६३९ वर्षे आसो सुदि १ दिने वारु गुरुदिने लिखितं । छ । छ । मुनि प्रेमविजयपठनार्थं । कल्याणं भवतुमिति भद्रं । गुरुप्रसादात् ॥ (नोंध : पांत्रीशमा बोलनो पाठ खूटे छे - ह. भा.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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