Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 109
________________ [104] गांगेउ - नइ मनि दया - नु परिणांम । ति वार गांगेइ बांण मेल्हिउं । चउपई जव गांगेइ परठिउं बाण मणुअ बापडा कहि कुण मात्र मेल्हिउं क्षिप्र बांण गांगेवि कहि-नां नाक गयां कहि कांन कासीपति बोलाविउ राउ अम्ह कूं कुत्री नही मोकली कासीपति लागु तु पाइ ए त्रिणइ कंन्या तुम्हि वरु चालु हुं साथिई आवेसु आपिसु सवि मयगल तोखार गांउ - साथि थिउ राउ गयपुर पाटणि उत्सव-रंग विचित्रवीर्य परणाविउ राउ मनह तणा मनोरथ सवइ विषय - सुखि लागु राजिंद राज- तणी कय न करइ सार वीसारी माय-तणी भगति गांगेउ मन-माहि न धरइ अमर-लोक छांडइ सुर-ठाण विण - लागा मोडाविया गात्र वेणी - डंड गया सवि खेवि नास भड मेल्हि सवि मांम कहि तूअ करउं किसु हिव ठाउ हव जे तउ सिख्या दिउं कर जोडी वींनती कराइ जं जं जाणु तं तं करु तिहा आवी वीवाह करेसु अरथ गरथ कोठार भंडार लोधा अपर सवे समुदाउ वरतिउ वडउ महोत्सव - रंग पणि ते गांगेउ-नु पसाउ पंच विषय सुहभर भोगवइ अनि कांई तेह जि आणंद पायक परिघु गय तोखार गुरु-देव-नी न जांणइ जुगति धरम नींम कांई नवि करइ दिणि दिणि रमणि - सरिस घण नेह छुडि राउ दुर्बलउ देह श्रवण अंखि नासा हुई हीण तं जांणी जंपइ गांगेउ विषय - सुखि लागु एकंत धर्म अर्थ शिव - सुख - नुं ठांम एक कामि लागु मन रंगि सत्यवती दीध उपदेस गांगेउ-ने लागु पाइ Jain Education International ली १३० वचन - कला सघली थई क्षीण सांभलि बांधव साचु भेउ देखि देह-नु आविउ अंत त्रिहुं - तणुं तई फेडिडं ठांम जाइसि मरी नींमिसहि भग्गि लाजिउ मनि कांई लवलेस च्यारइ बोल पतगरिया राइ For Private & Personal Use Only १३५ १४० www.jainelibrary.org

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