Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[ 103 ] नु कुमर दधिपूर्ण । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । आ मरु-देस-नु स्वामी कृष्णदेव राजा-नु कुमर महीनाथ । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । अर्बुदाचलदेसनु स्वामी प्रहराज राय-नु कुमर राजस्यंघा । गमइ ? अत ना । वली प्रती० । दस-सहस्र मेदपाट-नु स्वामी सहस्रमल्ल-नु कुमर कलाकर्ण ! गमइ ? अत ना। वली प्रती० । सवालख-नु स्वामी मल्लराज तेह-नु अखइराज कुमर गमइ ? अत ना। वली प्रती० । ऊंडडविहारदेस-नु स्वामी गंगाधर राजा-नु कुमर गंगदत्त । गमइ ? अत ना ।
तिहां थिकी त्रिंण्णइ चाली अनइ गांगेउ-नइ रथि आवी छई । प्रतीहारी कहइ छइ, साठि लक्ष कुरूक्षेत्र देस, ए तेह-नु स्वामी गांगेउ बोलीअइ, जान्हवी गंगा-तणा उदर-नु ऊपनु, स्यांतन-राय-तणु पुत्र, सोभाग-सुंदर, असम साहसीक मल्ल । सहस्रकिरण सूर्य-नइ प्रतापि, सोल-कला-संपूर्ण जेह-नी किरणावली। शूरवीर पराक्रमी, स्यंघ-ने परिक्रमी । माता-पिता-नु भगत । गंगाजल-समान जेह-ना निर्मल गुण । वाचा-अविचल मर्यादा-मयरहर । सरणाईचिडाय-पांजर । दांनि दलिद्रहर, जाचक-जन-कल्पतर । एकांग वर वीर । वीराधिवीर बिरिदा चतुर्दश विद्या-निधान बत्रीस-लक्षणक । बहुत्तरि-कलाकुशल । कूर्चाल सरस्वती । गोत्र-गोवाल । बाल-ब्रह्मचारी । एह गांगेउ कुमर । जइ एह-ना पद-कमल प्रामीअई तु मनोवांछित वर-तणी प्राप्ति हुइ ।
प्रतीहारी-ना ए बोल कहतां समी त्रिंण्णइ कन्या ऊपाडी समकाल आपणइ रथि बइसारी । वली गांगेउ कहइ छइ, भईओ ! कहिसि अणकहिइं छल करी गिउ । हुं कही कहावी जाउं । जेह-ने खवे खाजि हुइ, ते आविज्यु । जेहनई पेट दुखतुं हुइ, ते आविजिउ । इस्या बोल कही गांगेइ हाथि धनुष लीधु । धोंकार नीपजाविउ । तिवारं घणा कुमर पुलायन करिवा लागा । नासता एकि अडवडी पडई छई । हाथ-पग अलगा हुई छई । जिम केसरी स्यंध-नइ नादि गजेंद्र गडडी पडइ ते परि सयंवर-मंडप-माहि हुवा लागी छइ । चालिउ गांगेउ हस्तिनागपुर-भणी । तीह-माहि जे महा शूरवीर हता ते परस्परिई कहिवा लागा। आपणपई जीवताइ आ एकाकी मात्र त्रिण्णिइ कन्या लेई चालिउ । वली कही कहावी-नइ । ति वार लाख राजकुमार ऊ(४ क)ठिया । आपणे आपणे परिवारसहित गांगेउ-ना रथ भणी आवीआ । ... गलई वलिया रथ चउ केर वींटिउ। बांण-नी धर धोरणि चलावी । पणि गांगेउ-लगइ एकइ न जाई । पणि तुहइ
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