Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[106] राजा शकुनि व्यग्र-चित्त दिहाडइ दिहाडइ दूबलु थाइ ।
बिंदुनाऽप्यधिका चिंता चिचा, थाइ (?) भवेत् तु मे मतिः । चिता दहति निर्जीवं, चिंता जीव-समन्वितम् ॥
एकदा प्रस्तावि राजा शकुनि निद्रां पुढइ छइ, सिपुनांतर-माहि सिउं देखिवा लागु छइ । देवि-एक देखइ, दीदीप्यमान देह, चलत कुंडल आभरण (४ख), देव-दुक्खित(?ष्य) वस्त्र । जिसिउ कांई तेज-नु पुंज हुइ । रूप सौभाग्य लावंन्य-नी धणीयांणी जाणइ हुंति । (ति)णि जागविउ। राइ पगे लागी प्रणांम कीधु । मात, तम्हे कुंण । कहीउ। हुं तम्हारी कुलवति(? देवता) । तुं चिंतावन्त जांणी करी हुं तुझ रहई कहिवा आवी । ए कुमरि-नई वर-तणी चिंता म करिसि। ईहरई एक-इ-जि वर सिरजिउ छइ । शकुनि वली पूछइ छइ । मात, कहु-न ते कुंण । देवि कहइ छड्, सांभलि । हस्तिनागपुर पत्तन तिहां गांगेउ कुमर स्यांतन राय-नु बेटु जयवंतु वर्तइ, तैलोक्य -नमस्करणीय, बाल-ब्रह्मचारी, शूरवीर पराक्रमी। तेह-नु लघु भ्राता विचित्रवीर्य राजा दिवंगत हूउ । तेह-ना त्रिण्णि पुत्र छई, धृतराष्ट्र, पांडु अनइ विदुर । जे धृतराष्ट्र छइ, जे जन्म-जाचंध छइ, पणि भाग्यनु धणी छइ । ताहरी आठ-इ बहिनहं रई विधात्रां तेह-इ-जि वर सिरिजिउ छइ । ए वात साचीअ-इ-जि । पणि जाणे तेह-थिका तझ-रई सखाईआ घणा हुसिइं ।
एतली वात कही-नइ देवी जिम वीज-नु झात्कार हुइ तिम जातीअइ थाकी । शकुनि जागिउ, जिहां देवि आवी हती तिहां पारिजातक-नां पुष्प-नु प्रकर देखइ । ति वारं सिपुनांतर-नी वार्ता साचीअ-इ-जि जांणी । राइ विमासण कीधीअ-इ-जि नही । चतुरंगी सेना द्रव्य-नी कोडि, अनेकि समुदाउ, आठइ कंन्या गांधारी-प्रमुख प्रधान पुरुष-रहई राजा चलावी अनइ हस्तिनाग-पुर-भणी चालिउ । आगलि थिका भट्टमात्र मोकलिया छई । तेहे गांगेउ जणाविउ । ते वात जांणी गांगेउ सुहर्षित हूउ। भटमात्र-रहई घणुं दांन दीर्छ । मोटइ विस्तारि गांगेउ सांम्हु चालिउ छइ । राजा गांगेउ आवतु देखी शकुनि रेवंत-थिकु ऊतरिउ गांगेउने पगे लागु । विवाह-नी वात जणावी । मोटइ महोच्छवि धृतराष्ट्र आठ कुमरितणां पाणिग्रहण कराविउ । शकुनि आपणि राजि पुहुतु ।
(पांडु-विवाह) वली गांगेउ पांडव-कुमर-ना विवाह-नी घणी चिंता करइ । इसिइ प्रस्तावि कुणहिइं एकं देसंतरी आगइ गांगेउ यादवेंद्र-नी वात जणाविउ छइ । हवं
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