Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
[109]
बेई सोरीपुर गया
कूंती राउ अछइ उत्संगि
सोइ मोकलिउ सोरीपुर-भणी वार म लाइसि कहीअइ घणी अंधविष्णु - उ भेटीआ दस दसार- सहि कही सु वात पांडु प्रति कुंती दिउ रात पांडु वान सवि गुणि मन - रंगि मझ इणि जनमि पांडु भरतार भोजन- भगति हुई सुविलासि म करु एह विवाह - नी वात जनम-लगी एह- नई पांडु-रोग आगइ वात कही मझ केणि हवडां अछइ विमासण कांइ मिली करी नइ पाछउ वलिउ पांडु टलत न करुं भरतार तिणि आशासन दीधी तेह हस्तिनागपुर पाटण जिहां तिहां-तणु सह कहिउ भेउ (बोली)
तु कुंती समरइ किरतार ते बेइ मोकलिया अवासि जादव - राइ कही मन - वात ए वर कूंती सिउ संजोग पांडु नांम लाधुं गुणि तेणि सूत मोकलिउ पाछु राइ पणि तोई कूंती - रहइं मिलिउ कूंती वर जांणिउ ते सार धात्री वात जणावी एह गांगेउ - नु चर गिउ तिहां वेगिहि मिलिउ जई गांगेउ
चर कहइ छइ-सांभली, पइला मोटा राजाधिराज । पणि तुहइ आपणु वस वखांणिउ । कुल वखांणिउं । वली तेहे कहिउं - जीह - नइ पूर्विज श्रीशांतिनाथ - प्रभु, श्रीकुंथुनाथ, श्री अरनाथ चक्रवर्ति धर्म - चक्रिवर्ति हुआ हुई, ते घर ते वर किणि मागिउं, किणि लाधुं ? पणि तांहि वडां विमासण छइ । वली सरूप कहावी अइ छइ ।
(चउपई ) एही नही अमर - सुंदरी
नवि किन्नरी न कइ चिंतरी इसी नारि अवर न सुणि भूप कहइ पांडु तेह - नुं मन किसिउंजइ जांणइ तु कहि छइ जिसिउं
कुंती-तणुं अनुपम रूप (५ख)
बे कर जोडी ते चर भणइ खरीअ वात ए सवि जांणउ सांभलि माहरी वाचा सार इणि वातं मनि हरखिउ भूप
Jain Education International
कुंती कलत्र हुसिइ तम्ह - तणइ मझ-आगलि भागु तिणि भेउ पांडु टलत न करु भरतार जांणिउं कूंती - तणउं सरूप
१७५
For Private & Personal Use Only
१७८
१८०
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122