Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 116
________________ किहां वइताढ (किहां ) ए रान मझ तई दीधुं जीवी-दांन एह नेह रखे हुए भंग तुं तो उ वसुह-विख्यात जइ भांजी न सकुं संताप विरला जाणंति गुणा, विरला विरयंति ललिय - कव्वाइं । विरला पर- कज्ज- करा, पर- दुक्खे दुक्खिया विरला ॥ हिव आपणपा बिहुं सनेह जेहु मोर अनइ वलि मेह अविचल प्रीति अनइ मन - रंग मझ आगलि कहि मन - नी वात तु मझ कृतघन-केरु पाप गुह्यमाख्याति भाषते । ददाति प्रतिगृह्णाति, भुंजयते भुंक्ते चैव षड्विधं प्रीति - लक्षणम् ॥ (दोहा) पांडु भइ बांधव निसुणि मझ यादव - वंश जा न दिइ तं सुणि विद्याधर भणइ मनह मनोरथ पूरिसिइ इणि विद्या छइ थंभणी कज-सिद्धि अदृशीकरण इणि करि थिकी सहू नमइ जइ लवलेस सुकीअ हुइ आपुं अगास-गामिनी इणि मुद्रां अधिकी फुरइ विद्याधर मुकलावि गिउ मुद्रा पहिरी राइ करि विद्या - बलि ऊपडिउ अगासि रमलि - रेसि तिहां कूंती (६क) इसइ सूर आथमिउ सु जांणि धात्री गई माहि वन खंड --- Jain Education International कहीसु कुंती - वत्त तिणि हुं अधुं सचित एह जि मुद्रा ह .. मनि मां' णिसि संदेह वमीकरण इणि होइ अतुलीअ बल इणि जोइ राउल रा राजिंद संभलि पांडु नरिंद विद्या हुं तम्ह-रेसि होंडे देसि विदेसि वलि आपणइ सुवासि जोई वात विमासि ( पांडुनुं शौरीपुर - गमन ) (चउपई ) गिउ सोरीपुर - तण निवासि अछइ गयु पांडु तिणि वनखंडि पछइ नव- पल्लव लेवा अहिनांणि अदृश न देखइ कूंती पांडु For Private & Personal Use Only २०० २०५ www.jainelibrary.org

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