Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
[ 114] 'शत्रुजय-मंडन-ऋषभदेव-स्तुति'नी प्राप्त वधु हस्तप्रतो
मुनि भुवनचन्द्र _ 'अनुसंधान' (५)मां पृ. ८० उपर 'शत्रुजयमंडण-ऋषभदेव-स्तुति' ए नामनी अपभ्रंश कृति प्रसिद्ध थई छ । खंभातना पूर्वोक्त ज्ञानभंडारमाथी आ कृतिना बालावबोध तथा टीकानी बे हस्तप्रतो पाछळथी प्राप्त थई । टीकाना प्रारंभे 'श्रीविजयतिलकोपाध्यायविहितविज्ञप्ते...' एवो स्पष्ट उल्लेख छ । आथी आना कर्ता विजयतिलक उपाध्याय निश्चित थाय छ। 'जैन गूर्जर कविओ' मां तथा 'मध्यकालीन गुजराती साहित्य कोश-१'मां आना कर्ता तरीके 'वासण' साधु नोंधाया छे ते हवे परिमार्जननो विषय बने छ । टीकारचना के प्रतिलेखननो समय प्रतिमां आपेलो नथी। प्रति सोळमा सैकानी जणाय छे। टीकाकारना नामनो पण निर्देश नथी ।
टीका संक्षिप्त छ- 'अर्थघटना'-अर्थ बेसाडवानो ज उद्देश टीकाकारे राख्यो छे। अपभ्रंश/जूनी गुजराती भाषानी कृति उपर संस्कृत टीका लेखे आ रचनानुं महत्त्व अवश्य गणाय ।
बालावबोध कंईक विस्तृत छ। कर्तानो निर्देश नथी । लेखनकाळ सोळमो शतक जणाय छे ।
बंने प्रतिओमां अशुद्धि पुष्कळ छे । छतां आ बे प्रतोमांथी केटलाक स्थळोए शुद्ध पाठ मळे छे, जे अहीं नोंध्या छ ।
३१मी गाथामां आवता 'आरवेला' शब्द विषे बंने प्रतो- अर्थघटन जुहूं पडे छ । बंने प्रतोना संबंधित अंश विद्वानोनी विचारणा अर्थे अहीं नोंधुं छु :
बाला - वली समुद्रनइ विषइ वेल थाइ । इहां संसाररूपिया समुद्रमाहि राग-द्वेष-रूपिणी वेल, आर कहता उछकचिल (तुच्छ कचिल ?) जिम वहई ।
टीका - आरवेलत्ति । क्रोधात्मिको द्वेषः, अनुरागमयो रागः, द्वे आरवेला पयोभ्रमच्युताः पोतभंजनशीला कुंभी, ते द्वे वहतः।।
मूळ पाठमां संशोधन : गाथा क्र. संशोधित पाठ गाथा क्र. संशोधित पाठ परिभमिउ
२२ लहुडलई सयल कसायह भेअ | २३ ए चिहुं ए कारणजोगि २० पमुह चिहुं तिहिं हुंति | ३१ दोसलउ ए रागलउ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122