Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ [110] पांडु-कुमरि नवि लाई वार दीधु तास लक्ष दीनार पणि तोई मनि अति असमाधि जांणे अंगि विलागी आधि किणि दिणि कुंती परणिसु कहइ तनु पलंगि निशि-भरि नवि रहइ भोजनि रसि मनु मांनइ नही वावि सरोवरि न रमइ रही सुरभि सुगंधि न मनु वीसमइ नदी-तडा-तडि जई नवि रमइ (पांडु वडे विद्याधरनी मुक्ति) एक दिवस पल्लांणि पवंग बाहिरि वणि जावा मन-रंग वेगि वेगि गिउ वनि उद्यांनि तुरिय बंधि पमरिउ आरांमि १८५ दीठु खायर-थुडि एक पुरख करड पुकारि देहि घण दुक्ख जडिउ निवड खीले लोहमइ दीठु खांडु कुमरि तिणि समइ ते देखी दुख थिउं भूपाल दिवस-माहि पुहचइ(इ)ह काल जनमिया कांई जिणिणि ते पुरख जे न सकइ भंजी पर-दुक्ख समरिउ संतिनाह सिरि कुंथु समरिउ गांगेउ गुणवंत माहरा मन-नुं चिंतिउ हुजिउ एह पुरख-नुं दुख भाजिउ एक-मनु गिउ तस आसन्नु खीलु तांणिउ ते लोहमु साहस-बलि सोइ नीकलि जाइपडिउ पुरुख महि-मंडलि ठाइ चेत-वेत नवि कांई तास अधिकु लेवा लाग सास जांणिउं मरिसिइ दिउं नवकार वारुं चेत किमइ जइ लगार १९० वाला-केरु करि वींजणु . तीणि वाउ कीधु तस घणु वलि नवकार-मंत्र-संकेत विसा सोल सिरि वालिङ चित मुद्रा पांणि दिखाडी तेणि कर ऊतारी लइ राएणि तस अभिखेकि नीरि छांटेइ गइअ पीड वेगिहि ऊठेइ पांडु-कुमर-ने लागु पाइ विनय-वचन बोलइ तिणि ठाइ कहि बांधव कुण दिउं अपमांन तई मझ दीधुं जीवी-दांन उपगारह कीजइ उपगार ए नवि कांइ वडु विचार पणि तां तुं मनि अछइ सचिंत कहि मझ-आगलि भांगें भंति मझ वैताढ्य वास-नु ठाम विशालाक्ष सुणि माहीं नाम वेसासी विद्याधरि लीउ इहं आंणी अपाइ पाडीउ १९५ पुव्व-सनेहि निसुणि बलवंत इणि वनि आविउ भमत भमंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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