Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 83
________________ [78] १, ६, ४, सू. १९२ मां तथा १, ८, २, सू. २००मां आवता हण पाणे घातमाणा माटे हणपाणघातमीणा एवं चूर्णि- पाठांतर, तथा १, ८, २, सूत्र २०७ मां आढायमाणे माटे आढायमीणाए एवं जूनी प्रतो, पाठांतर । आवां बीजां पण पाठांतर नोंधायां होय । जेम. के 'आयारंग-चूर्णि'मां आरंभमीण एवं रूप पण मळे छे. चन्द्रे 'सूयगडंग'-मांथी विकासमीण नोंध्युं छे. प्राचीन प्राकृत अभिलेखोनी भाषा पर जेमणे विद्वताभर्यु पुस्तक लख्यु छे ते डो. ग. अ. महेंदळए पण नोंध्युं छे के -मीन-/-मीण- प्रत्ययांत कृदंत-रूपो अशोकलेखोनी पछी मळतां नथी. आनुं तात्पर्य ए छे के अशोकलेखो अने प्राचीन जैन आगमोनी भाषामां जळवायेलां, अने पछीथी पालि के प्राकृतोमां अज्ञात आवां ०मीन/०मीण प्रत्ययांत विरल वर्तमान कृदंतो इसु पूर्वे त्रीजी शताब्दी आसपासनी मगध-प्रदेशनी लोकभाषामां प्रचलित होवार्नु आ उपरथी जोई शकाशे, अने तेने जैन आगमग्रंथोमां विविध कक्षाए वधताओछा प्रमाणमां मूळ परंपरा जळवाई होवाना एक चोक्कस पुरावा तरीके पण चींधी शकाशे. जू. गुज. आंबलु ‘पति, प्रियतम' 'वसंतविलास-फागु'ना ४९मा पद्यनो पाठ अने अनुवाद, संपादक कांतिलाल व्यास अनुसार (ई. १९५९, १९६९) आ प्रमाणे छे : धन धन वायस तूं सर, मूं सरवसु तूंअ देसु, भोजनि कूर करांबुलु, आंबुलु जरि हुं लेहसु । - 'धन्य छे तारा स्वरने, बायस ! मारुं सर्वस्व हुं तने आपीश; भोजनमां कूर अने दहीभात आपीश -- जो (तारा शुकने हुँ) मारा वहालाने पामीश ।' Indo-Aryan (=L' Indo-aryen - अंग्रेजी अनुवादक Alferd Master, 1965)मां Jules Bloch एवं जणावे छे (पृ. २५१) के सं. प्रत्यय-मान-ना मूळमां भारतइरानीय --म्न- छे, अने पूर्वीय अशोकलेखो अने 'आयारंग-सुत्त मां मळतो -मीनप्रत्यय एनुं रूपांतर छे, जेना उपर सं. आसीन-जेवा रूपमां मळता-ईन-प्रत्ययनो प्रभाव पड्यो होय. ब्लोखे तेमां प्राकृत मेलीण-ने पण ध्यानमा लेवानुं कर्तुं छे, परंतु मेलीण-, गलीण-, पपलीण सादृश्यमूलक होवार्नु मे अन्यत्र सूचव्युं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122