Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 38
________________ [33] भयभीमम्मि मसाणे न(नि)सीहे संकेण(य?) गउ । तम्मि रयणीए पियर वविऊण(?) उष्फालिऊण पूउगवगरणजुत्तो पायार फडिऊण तम्मि पएसे गउ। मयगमणाहमाणावी(वि)उ। फुकारंत मयगं निद्धाडिऊण समागयं तस्स समप्पेइ। मयगब्भहुणण(ण) करितो सिद्धपुत्तो मयगहिययासणो(ठिउ) । घोरसद्देहि (? थोरसाहाहि ?)हुणणं कयं । नाहडो गहिय तुरिउ छिडे(छुरिउ ठिउ ?) वेयालदुगं तुरियेहिं अग्गि नमह(?) परिव्वायगेण खुद्धेणं सिरि(र)च्छिदणोवाए नाहडेणं "णमोरिहंताणं" भयभीएणं समभिज्जंताण सम्मद्दिट्ठिदेवयाहिं थंभिउ परिवायगो खत्तिएणं क्खुडति नाऊण[छि]दिऊण अग्गीए हुउ । मयगमवि सयं सगेहे निदं गओ । गोसे उठेऊण पलोयणत्थं गउ। पुरिसदुग(ग) ज्झलमाणं पिच्छियं । हउ धुत्तो, सिद्धोहं, हरिसवसगस्स । तम्मि नयरे अपुत्तो कालगउ जसवम्मो पंच दिव्वाई तस्सोवरि स घोसियाणि हत्थिणा अभिसिंचिउ। कउ कलयलसूरियं बंभंडं । नाहडुत्ति राया पट्टलच्छीए सद्दाविउ । एवं गयणंगणे देवयाए घोसिए । नट्ट गीय रायचिंधसि(स)हियस्स अभिसेहो जाउ । दुट्ठा वि नामिया । च्छत्तीस लक्खत्तउ ज्जेआण(?) काऊण सु(पु)णो सनगरे पि(पे)सिउ महूसव(वे)णं । तम्मि दिणे पियरं नाऊण वियलंगं समुच्छिउ(ट्ठिउ ?) जाईसरणुव्व मुच्छिऊण सचेयणो चेव सम्माणेइ, गलियअंसुद्ध(व्व ?) जाउ-"तुज्झ पसाउ, नो मम पसाउ''। पुरिसाउ पुरिसा गिन्हिया । महानरिंदो । सत्थवाहपियरेण सम(म)वाराणसीए गिलाणवासि(स)ट्ठियाणं अज्जमहागिरि गुरूणं वंदणयाए गउ । पुच्छिया भगवंता"न जाणह दुमगो राया" । पडिवोहिउ । अज्जसुहत्थागमसं(ण) दटुं सरणं व पुच्छणा कहणं । पवे(पाव ? पव ?)यणम्मि भत्ती तो जाओ संपई रन्नो ॥ चंदनु(गु)त्तपहुत्ते(?) विंदुसारस्स मित्तउ ।(?) आरुगे(असोग ?)सिरिणो मु(पु) तो, अंधो जा[य]इ कामिणा(कागिर्णि)। जवमयू सू(मू)रियवंसो(?) दारो दविणदाणसंभोगो(?) । तसपाणपडिक्कमओ सभावओ समण सव्व(संघ ?)स्स ॥ उयरियमउ चउसु तिदारेसुं महाणसेसो करेइ । णिताणंतो भायण पच्छा सेसे अगुत्ते य । साहूणं दे संप[इ] रायपिंडाउ न गिन्हति । एवमचित्तागालिय गुत्तविया मोरं दिट्ठमिए चे वहेह तस्स मुल्लं चएमि। पुच्छा य महागिरिणो । अज्जसुहत्थिसमत्ते अणुराया धम्मतो जणो देइ । सभो वा वीसकरणं(?) तक्खणं जाउंटणणियत्ती संभोईया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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