Book Title: Anusandhan 1996 00 SrNo 06
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ [60] "गौतमस्वामिच्छंदांसि" गत कठिन शब्दो १/४ परवरीयई पुनि पुण्यथी परिवरे, वधे. २/४ गणनायकु गण(गच्छ, मुनिसमुदाय)ना नायक ३/४ गणराउ गणराज-गणना राजा ४/१ गणहरु गणधर (तीर्थंकरना मुख्य शिष्य) ५/२ कंतु कांत-प्रिय ६/२ लद्धिसमिद्ध लब्धि-समृद्ध; (लब्धि-विशिष्ट शक्ति) ७१ कज्जारंभिहिं कार्यारंभे ७/१ भविय भव्य (-जन) ७/३ गलहत्थिय गळे झालीने काढी मूकीने ७/३ दुरियभरु दुरित वृन्द ७/४ दुत्तर ७/४ झत्ति शीघ्र ९/२ झाणु ध्यान १०/३ पंगुरणु पांगरण-कपडां वगेरे ११/२ सुक्खसयाई सौख्यशत-सेंकडो सुखो १४/३ पिच्छल सुंवाळु, लीसुं, चमकतुं १५/१ जन्नु यज्ञ १५/१ सुरसत्थु सुरसार्थ - देवोनो समूह १५/३ सव्वनवाइ सर्वज्ञवादी (पोताने सर्वज्ञ मानतो) १५/४ उप्पाडवि ऊंचो करीने १७/३ समवसरणि समवसरण - तीर्थंकरनी धर्मसभा १६/१ सत्तहत्थ सुपमाणु सात हाथ ऊंची कायावाळा १६/३ पारंतइ पारणां करतां दुस्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122